२२१ २१२२ २२१ २१२२
कोई अगर कहे इक कटु सच, बुरा न
माने
अब आपके प्रशासन सब हो गए
पुराने |
संतो अभी कथा वाचन बंद कर दिए
हैं
विश्वास अब नहीं, झूठे हैं सभी
फ़साने |
परदेश में सभी लालायित, ब्रिटेन,
डच, फ्रेंच
वो पोर्तगीज आये डेरा यहीं
जमाने
झगडा अभी नहीं निपटा दैर–ओ-हरम
का
जो आग दैर की, कोशिश कर अभी
बुझाने |
तस्वीर तेरी’ भी बिलकुल साफ़ तो
नहीं है
नादान ! इसलिए कहता हूँ न मार
ताने |
हर बार मात खाया है जंग में
सरापा
अब तू कभी न कोशिश कर शक्ति
आजमाने |
ये वक्त गत्लियाँ सारे है
सुधारने का
तुझको शर्म नहीं क्या इस वक्त
को गँवाने |
कालीपद 'प्रसाद'
चिंतनीय !
ReplyDeleteशुक्रिया आ गगन शर्मा जी
Deleteसादर आभार डॉ रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी , इस् पोस्ट को साझा करने के लिए |धन्यवाद
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