Sunday, 29 May 2016

दोहे !



बारिश बिन धरती फटी, सुखे नदीतल ताल
धरणी जल दरिया सुखी, झरणा इक-सी हाल |

बादल जल सब पी गया, धरा का बुरा हाल
कण भर जल नल में नही, तृषित है बेहाल |

श्याम मेघ बरसो यहाँ, धरती से क्या बैर
अटल सत्य मानो इसे, हम तुमकु किये प्यार |

कहीं बाड़ें कहीं सुखा, सोचो मुक्ति उपाय
कम से कम जल वापरे, इ है उत्तम उपाय |

अतिशय गरमी आज है, चरम छोर पर ताप
खाली नल में मुहँ लगा, प्यासा करे संताप |

रवि है आग की भट्टी, बरस रहा है आग
झुलस रहा है आसमाँ, जलता जंगल बाग़  |

नहा कर वर्षा नीर से, फलता वृक्ष फलदार
फूल के हार से धरा, करती है श्रृंगार |

जल है तो सब जान है, जल बिन सब है मृत
मरने वालों की दवा, नीर ही है अमृत |


© कालीपद ‘प्रसाद”

4 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 31/05/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " मिट्टी के घड़े - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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