Tuesday, 21 August 2012

द्वन्द




पत्थर (पुरुष प्रकृति) :(छबि - सौजन्य -गूगल )

अबले  ! हँसाया मुझको तुने
क्या कहूँ  इस दुनिया में
अनगिनित अवलायें
रखती आई है
कितनी ऊँची-ऊँची अरमाने
जैसा कि तुमने ख्याब देखा
इस पत्थर दिल को पिघलाने
अबले ! हँसाया मुझको  तुने।

देखा कभी तुमने क्या ?
पतंग दल ने आग बुझाया ?
कुसुमदल कभी काँटों के द्वंद में
रहा क्या अक्षत , प्रस्फुटित पूर्व रूप में ?
प्रभंजन की भीम लड़ाई में
क्या किया वनराज ने ?
अबले ! क्या किया तुमने घन रूप में ?

सुना नहीं तुमने क्या ?
वज्र सदृश मेरी कठोरता
विन्ध , हिमालय ,हिमाद्री आदि
टिका है मुझ पर ,मैं हूँ किरीटि ,
तुम भी मेरी देख कठोरता
बन जाती हो हिम, त्याग कोमलता
पर मलय ,सुमंद पवन
और सूर्य प्रताप किरण
पिघलाए तुम्हे ,बह गई, न पाई रहने
अबले! मुझ में क्या परिवर्तन देखा तुमने ?


पानी की धारा ( नारी प्रकृति ):   
सत्य है, जो कुछ तुमने कहा, झूट नहीं,
पर गिरि-श्रृंग चिरकर
बहती क्या झरना नहीं?
यदि तुम  कठोर मैं कोमल,
मुझमे  अगर शक्ति नहीं ?
बना लेती राह  कैसे अपनी ,
मैं सबला  , अबला नहीं।

देखा नहीं तुमने क्या
मेरा वह रूद्र रूप ?
कितना भयंकर , विभीषिका पूर्ण
और कितना  ही विद्रूप ,
क्षण भर में बहा लेती मैं
करती सबको निमग्न यहाँ
न दिखते तुम,न दिखाई देती हरियालियाँ
न दिखता हिमालय यहाँ।

पर स्व-धर्म पालन करती हूँ मैं
निर्झर झर -झर  बहती हूँ ,
अपनी शान्त तरल गति से
धरती को शान्ति देती हूँ ,
कोमलता ,धैर्य और सहनशीलता
का प्रतिक हूँ मैं ,
कर सकती हूँ असाध्य साधन
अवोध मानवों को सिखलाती  हूँ।




रचना : कालीपद "प्रसाद "
            ©  सर्वाधिकार सुरक्षित 




9 comments:

  1. kalipad ji klisht hindi bhasha ki sundar rachnaayen.....badhaayee

    Ehsaas....

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  2. dhanyabad, aabhaar.

    "Dil ki sunapan se pyar"

    "Pyar kya hai" bhi padhe aur batayen. aapki rachnayen bhi mujhse share karte rahe.
    Aabhhar

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