Friday, 31 August 2012

दिल की सूनापन से प्यार




दरवाज़ा  खोलने में डर लगता है 

इधर भीड़ उधर भीड़ , जिधर देखो भीड़ ही भीड़ है
मगर इस भीड़ में     हर कोई अकेला है।

बचपन बिता  उछलते  कूदते  दोस्तों में अनेक
बुढ़ापा घसीट  रहा है तन को दोस्त नहीं कोई एक।

रंग विरंगे फूलों के तस्वीर जो आते थे सपने में
न जाने कहाँ खो गए वे मन के विराने में।

चले थे सफ़र में, अकेला ही अकेला
मुसाफ़िर बहुत मिला , दोस्त कोई न मिला।

यह भ्रम था! ,सपना था! कि "रिश्तों में बंधे हैं "
बिखर गए सब रिश्ते ,जब आँख हमने खोला।

सुना है  सब ज़ख्म का दवा है वक्त , वक्त को दो कुछ वक्त
बचपन , कौमार्य , जवानी गई ,गया नहीं बुढ़ापा कमबख्त।

दिल    की   सूनापन  से प्यार  की ,    हालत   क्या   कहे
दरवाज़ा  खोलने में डर लगता है ,कहीं मेहमान न आ जाये।

चिराग जलाया था प्यार  से कि घर में रोशनि  करेगा
बद  नसीबी देखो, कि कोई उसको चुरा के ले गया।

अँधेरा तब भी था, अब भी है , हो गया है गहरा
अँधेरी रात ख़त्म अब , शायद आ रहा है सबेरा।


कालीपद "प्रसाद'
 ©  सर्वाधिकार सुरक्षित






3 comments:

  1. चले थे सफ़र में, अकेला ही अकेला
    मुसाफ़िर बहुत मिला , दोस्त कोई न मिला।

    अतिसुंदर...|आपने शब्दों के सहारे,अंतरद्वंद को बखूबी पेश किया है....

    ReplyDelete
  2. चिराग जलाया था प्यार से कि घर में रोशनि करेगा
    बद नसीबी देखो, कि कोई उसको चुरा के ले गया।
    sunder
    badhai
    rachana

    ReplyDelete

  3. चिराग जलाया था प्यार से कि घर में रोशनि करेगा
    बद नसीबी देखो, कि कोई उसको चुरा के ले गया।... aisa hi hota hai aksar

    ReplyDelete