जीवन के मरुस्थल में प्रिये
तुम ही प्याऊ हो ,
नीरस जिंदगी में तुम
मधुमय रस हो,
टूटते लय की जिंदगी में ,
तुम जीवन संगीत हो,
वायु है ,जल है तुम हो प्रिये
तभी तो मुझे तुम्हारा खुसबू का एहसास है.
मेरे बेचैन मन की चैन हो ,
सुप्त अचेतन मन की चेतना हो ,
अविरल स्पंदित मेरे दिल का
तुम स्पंदन हो,
क्या कहूँ शब्दों में , एहसास करो
की तुम मेरे क्या हो ?
रचना : कालिपद "प्रसाद "
© All rights reserved (सर्वाधिकार सुरक्षित)
रचना : कालिपद "प्रसाद "
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Shri Prasadji,
ReplyDeleteEk dum sach kaha aap ne.
kbhi mere blog," Unwart.com" per aaiye aur apane vichaar avshy likhiyegaa.