ईश्वर से प्रार्थना ! |
क्यों आया ,कैसे आया
आया कि मैं भेजा गया
करना और क्या है जग में , समझ में कुछ आया नहीं।
प्यार पाया , प्यार किया
प्यार की भाषा सबसे बोला
पर नफ़रत क्यों फैला है जग में, समझ में कुछ आया नहीं।
अपनों का प्यार देखा
अपनों का द्वेष भी देखा
अपनाया हर रिश्ते को ,पर स्वार्थ के आगे कुछ ना टिका।
और रिश्ते जोड़ने के लिए
माता -पिता की भी अवहेलना की
उनने कहा "खुश रहो बेटा " हमें कोई तकलीफ़ नहीं।
उन रिश्तों का अब क्या कहना
अंत हुआ जब सब आत्म हित
तोड़ दिया ड़ोर ,रिश्ते क्या ? एहसान का भी मोल नहीं।
हे इश्वर ! तुमने मुझे भेजा यहाँ
देकर कुछ काम मुझे
भूल भुलैया में फंस गया मैं , निकलूं कैसे ,करूँ क्या ? कुछ पता नहीं।
कर्म ही पूजा ,कहती है गीता
कर्मफल ही भोगता मानव
मुझसे कराओ कुछ ऐसा कर्म, सृष्टि का बन जांऊ अभिन्न अंग।
सागर तट पर लगा है मेला
खेल रहे है लोग खेल खिलौना,
कब ,कौन, उठ जाता है मेले से ,किसी को कुछ पता नहीं।
नौ रसों का सागर है संसार
सबको जाना है सागर पार,
नाव नहीं है इस सागर में ,पार करना है तैर कर।
खट्टा ,मीठा ,खारा , तीता
सब रसों का संगम सागर,
मिला जुला स्वाद चख कर ही, जाना है सागर पार।
जो जाता है सागर पार
खो देता है चेतना अपनी ,
लौट कर आता है जग में , पर स्मृति रहती नहीं।
ऋषि ,मुनि , देव ,दैत्य
सबने माँगा रब से, अमरत्व का वरदान
भोग विलास की चाह होगी उनमें ,मैं मानव ,मानव का यह चाह नहीं।
मानव माँगते हैं तुम से (रब से )मोक्ष
पर मोक्ष नहीं चाहिए मुझे ,
मुझे दे दो जातिस्मृति ,और कुछ नहीं चाहिए मुझे।
हे इश्वर ! बार बार मुझे जग में भेजो
न अमरता , न मोक्ष ,देकर केवल जातिस्मृति
यही दिखायगी आइना मुझे , जग कल्याण करने तुम देना शक्ति।
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नोट :1. "जातिस्मृति" शब्द का प्रयोग " सभी पूर्व जन्म की स्मृति ,
वर्त्तमान जन्म की स्मृति एवं उसके आधार पर भविष्य देखने
की क्षमता " के लिए किया गया है।
2 चित्र गूगल से साभार .
कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित
गहन एवं सार्थक रचना !
ReplyDeleteजाति स्मृति के मिलने से जिग्यषाएं और प्रबल हो जाएँगी !
ReplyDeleteचिंतन तुल्य विषय !
बिलकुल सही-
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति-
शुभकामनायें आदरणीय ||
बहुत सुन्दर ... इस सागर को तैर के पार करना ... कृष्ण के भरोसे जरूर पार होगा ...
ReplyDeleteफिर गीता भी तो यही कहती है ...
सुन्दर ... अती सुन्दर ...
और रिश्ते जोड़ने के लिए
ReplyDeleteमाता -पिता की भी अवहेलना की
उनने कहा "खुश रहो बेटा " हमें कोई तकलीफ़ नहीं।
उन रिश्तों का अब क्या कहना
अंत हुआ जब सब आत्म हित
तोड़ दिया ड़ोर ,रिश्ते क्या ? एहसान का भी मोल नहीं।
अनमोल अनुभूति की अद्धभुत अभिव्यक्ति !!
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव..सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteप्रेरक और भावप्रणव रचना!
ReplyDeleteअनुभूति की लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,
ReplyDeleterecent post: गुलामी का असर,,,
बहुत प्रभावी और गहन अभिव्यक्ति...
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