Sunday, 27 January 2013

तुम ही हो दामिनी।

चित्र गूगल से साभार 


जानती थी मैं
जीवन एक  संघर्ष है ,      
हर युद्ध के पहले
युद्ध की घोषणा करना पड़ता है।
पर पशुयों को यह नियम पता कहाँ ?
बिना चेतावनी के मुझ पर हमला किया ,
हिम्मत नहीं हारा मैंने ,संघर्ष किया
पूरी शक्ति से,
अपने को बचने के लिए
उन नर पशुयों से।
जब तक थी चेतना  लडती रही,
चेतना हीन हुआ जब शरीर
क्षत -विक्षत किया
व्यभिचार किया
अपवित्र किया
फिर फेंक दिया मेरा मृतमान शरीर ,
घृणा ,वितृष्णा से
मैंने छोड़ दिया शरीर ।

मैंने देखा, सहा
दुराचारियों का अत्याचार ,
दुःख है मुझे ...
धर्म के ठेकेदार मुझे ही मानते हैं जिम्मेदार ।
पूछती हूँ तुमसे ऐ छद्मवेशी !
बोलो दिलपर हाथ रखकर
"क्या मानते उनको जिम्मेदार 
यदि तुम्हारी बीबी, बेटी से होता बलात्कार ?"

बलात्कारी की न माँ , न बहन ,न बेटी होती है ,
हवस के अंधे के सामने ,केवल एक औरत होती है।

ठेकेदारों !
धरम के आड़ लेकर शोषण किया नारी को
सती बताकर शांत किया
अहल्या ,दौपदी, कुन्ती ,तारा , मन्दोदरी को। 

नहीं बनना सीता , न ऐसी सती
न सुनना है धर्म की दुहाई ,
जितना किया है शोषण अबतक
करना होगा उसकी भरपाई।

देवी बनाकर किया पूजा ,
बनाकर पत्थर,मिटटी की मूरत ,
बना दिया गूंगी, बहरी ,अंधी,
अबला और अनपढ़ मुरख।

नहीं सहेगी कोई अत्याचार अब
अबला नहीं नारी,
छोड़ लज्जा का आभूषण
अब उठा लिया तलवारी।

शब्दों के भूल-भुलैया में
अब न फँसेगी  नारी ,
धर्म का हो या समाज का
अन्धविश्वास का खात्मा है जरुरी।

सती .........?    देवी ...........?
छलना नहीं तो और क्या है ?
सदियों से नारी का शोषण
ठेकेदारों ने ऐसा ही किया है।

थी मैं अनाम ,हूँ मैं अनाम
निर्भय ,किसीने कहा मुझे दामिनी
बहनों  ! जागो ,उठो ,लड़ो , निर्भय हो 
मांगो  न्याय ,तुम ही हो दामिनी।



रचना : कालीपद "प्रसाद"
© सर्वाधिकार सुरक्षित









25 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    वन्देमातरम् !
    गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!

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  2. मैंने देखा, सहा
    दुराचारियों का अत्याचार ,
    दुःख है मुझे ...
    धर्म के ठेकेदार मुझे ही मानते हैं जिम्मेदार

    मंदबुद्धि और क्या समझ सकते हैं ....

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  3. bahut hi savdenshil rachnaye...sabhi ko naman

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  4. देर से ही सही मगर दामिनी को न्याय मिलकर ही रहेगा,,,

    recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

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  5. बहुक सार्थक और प्रेरक !

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  6. सार्थक, सटीक एवं संवेदनशील प्रस्तुति ! नारी को अब अपनी शक्ति पहचानने का वक्त आ गया है और उसे अमानुषों को दंड देना ही चाहिए !

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  7. बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति।

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  8. अति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...

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  9. बहुत सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति...

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  10. बहुत मार्मिक भाव चित्र मानसिक कुन्हासे का .

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  11. पूर्व में भी इस पोस्ट पर टिपण्णी की थी ,स्पेम बोक्स देखें .आभार आकी टिपण्णी का .

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  12. बहुत सटीक प्रस्तुति आज की हर नारी की पुकार हैं आपके शब्द हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति हेतु

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  13. आप के शब्द शब्द में नारी की व्यथा पुकार रही है..बहुत ही सटीक प्रस्तुति..

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  14. nishchit hi ye hadsa jhakjhor dene wala hai, aapne ek vyathit man ko shabd diye hain, bahut hi bhaavpurn, aisi kitni hi damniyan vastav me aaj bhi shoshit ho rahi hain, thik hi kaha hai..."TUM HI HO DAMINI"!

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  15. समसामायिक मार्मिक रचना..नारी को अपन रक्षक स्वयं ही बनना सीखना होगा..

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  16. समसामयिक रचना

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  17. सती और देवी कहकर स्त्री को छलने की परंपरा पुरानी है. विचारपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.

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  18. समसामयिक विचारपूर्ण रचना .

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  19. सती और देवी ? कहना छल है.मार्मिक रचना,इन shabdon का प्रयोग एक sajis hai

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  20. behatreen rachna.

    ab na chhaali jayegi na andhvishavishwas me phasengi,abla nahi hai nari.
    sakaratmk vichar.

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  21. Nice information
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