इस कविता की प्रेरणा है एक आध्यात्मिक गाना जो मेरे मामा जी अक्सर गाया करते थे, खासकर जब कभी वे किसी कीर्तन में या धार्मिक महोत्सव में जाते थे। इस कविता के शब्द तो मेरे है पर इसकी आत्मा मामा जी की है।हमारा ही नहीं हर प्राणी का शारीर एक विचित्र रचना है ईश्वर की। इसकी विचित्रिता आज तक कोई समझ नहीं पाया।
चित्र गूगल से साभार |
कैसे केशव बांधा आंशियाना
कैसे रंग चढ़ाया ?
निराला है शिल्प तुम्हारा
तुम भी हो निराला।
हड्डियों का ढांचा है यह
जोड़ जोड़ कर बनाया,
रक्त माँस भरकर इसमें
इसको पूर्ण बनाया।
उसके ऊपर त्वचा का आवरण
डालकर घर को सुन्दर बनाया,
कौन है इस दुनिया में कान्हा
कौन समझा तुम्हारी माया।
नया है घर ,नया है साज
सुन्दर है अन्दर बाहर,
पर काल -दीमक की चाल कुटिल
कण -कण कुतरता इसे निरंतर।
केश पकेगा ,दन्त हिलेगा
यौवन में लगेगा भाटा,
शनै: शनै: फ़ीका पड़ेगा रंग
टूटेगा मिटटी का सुन्दर ढाँचा।
जिस दिन होगा जर्जर पिंजड़ा
खुल जायेगा सब द्वार,
बन्ध पंछी आजाद हो जायगा
उड़ जाएगा आकाश के उस पार।
इस पिंजड़े का चंचल पंछी
उडता है केवल एक बार,
पंख फैला उड़ा जो पंछी
लौटकर नहीं आता दो बार।
कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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जहाँ न पहुंचे रवि ....वहां पहुंचे कवि . सम्पन्नता के मध्य मन गरीबों के घरों की सोचता है,ऐसा कम होता है-पर होता है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुतीकरण.
ReplyDeletebehatareen nazariya,nayab soch
ReplyDeleteसटीक और विचारात्मक नजरिया | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeletegreat analytical presentation.
ReplyDeleteआपको समर्पित
ReplyDeleteरमता जोगी बहता पानी
ये दुनिया की रीत पुरानी
sacchaai se bharpur rachna ijse manne ka dil nahi karta ........insaan bhool jata hai........
ReplyDeleteसुंदर दार्शनिक रचना के लिए बधाई....
ReplyDeleteआभार ! राजेश कुमारी जी !
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ... रक्त मॉस पे सुन्दर शरीर चढाया ... बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण भजन है ...
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति ..
संपूर्ण जीवन आख्याति छुपी है इस रचना में बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteजीवन की नश्वरता की ओर संकेत -काया कैसे रोई तज दिए प्राण ,....
ReplyDeleteजीवन की शाश्वतता का सुन्दर चित्रण, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteएक चेतना, सब संचालित, उसको पार लगाना..
ReplyDeleteदर्शन के दर्शन-
ReplyDeleteजीवन के यथार्थ का सुंदर दर्शन
ReplyDeleteRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
इसीलिये लूट सके तो लूट ले
ReplyDeleteनहीं लूट पायेगा अगली बार !
बात तो सही है
ReplyDeleteइस काया और ईश्वर की माया को समझना मुश्किल है
सादर !
उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteआप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 22 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
ReplyDeleteआप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
बहुत सारपूर्ण प्रस्तुति !!
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
सादर
अनु
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुरी
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
नव द्वारों का पींजरा तामें पंछी पौन.
ReplyDeletepinjre ke panchhi ka sundar prastutikaran .बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार सही आज़ादी की इनमे थोड़ी अक्ल भर दे . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
ReplyDeletejeevan ka sampurn sar.....bahut sudar
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव छिपे हैं इस रचना में |
ReplyDeleteआशा
जीवन का सार-सत्य..
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