तुम मुझे जानोगे नहीं
दुनियाँ की भीड़ में
तुम मुझे पहचानोगे नहीं ,
तुम्हारी नयन , तुम्हारी उपनयन
तुम्हारी सूक्ष्म दर्शियाँ
मुझे ढूंढते ढूंढते थक जाएँगी
पर तुम मुझे ढूंढ़ पाओगे नहीं।
मैं सूक्ष्म हूँ ,
पर सूक्ष्म जगत में भी
तुम मुझे देख पाओगे नहीं।
मैं कभी अलौकिक , अनादि अनंत ,
कभी भौतिक जीव हूँ
ठीक तुम्हारी तरह, सजीव हूँ।
आकाश ,अग्नि ,जल ,वायु का
संगम होता है जब मृत्तिका से
मेरा एक नया भौतिक रूप उभर आता है,
तुम्हारी तरह एक नया जीवन का संचार होता है ,
नाम होता है सीता ,गीता ,समीम
या कुछ और जैसे राम ,रहीम ,
या फिर पक्षी,पशु बृहद मातंग
या सूक्ष्म रूप किट पतंग।
कभी बनस्पति ,विशाल वट वृक्ष
पूजते हैं नर नारी मानकर नारायण।
हर प्राणी, हर वनस्पति
सब है मेरी ही प्रकृति।
जान में हूँ ,बेजान में भी हूँ।
जान पाए मेरा स्वरुप क्या तुम ?
क्या हूँ मैं? कौन हूँ मैं ?
मैं आकाश हूँ ,पर केवल आकाश नहीं ,
मैं अग्नि हूँ ,पर केवल अग्नि नहीं ,
मैं जल हूँ ,पर केवल जल नहीं ,
मैं वायु हूँ ,पर केवल वायु नहीं ,
मैं मिटटी हूँ , पर केवल मिटटी नहीं ,
मैं इनके समष्टि हूँ,
मैं भौतिक भी हूँ, और अलौकिक भी ,
तुम में
मैं अन्तर्निहित शक्ति हूँ
मुझे जानो ,मुझे पहचानो
कौन हूँ मैं ?
रचना कालिपद "प्रसाद
सर्वाधिकार सुरक्षित
मैं भौतिक भी हूँ ,अलौकिक भी.....बहुत बेहतरीन रचना .
ReplyDeleteजान में हूँ, बेजान में भी हूँ .... गहनता लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार
kamal ka likha hai apne.....anklan kar batana mushkil hai ki kaisa likha hai....umda
ReplyDeleteअन्तक को जानना ... आलोकिक शक्ति को पहचानना आसां तो नहीं होता ... पर जो इसे पाता है वो आत्मिक-सुख से भर जाता है ...
ReplyDeleteप्रकृति तत्व पर प्रकृति नहीं मैं।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteआभार कुलदीप सिंह जी !
ReplyDeleteआभार डॉ शास्त्री जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सारगर्भित अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकोsहम कोsहम
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteदर्शन से परिपूर्ण रचना
ReplyDeleteचैतन हूँ मै....... शाश्वत प्रश्न खडा करती रचना
ReplyDeleteमैं ही मैं हूँ बस जो भी हूँ .........बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमैं कृष्ण हूँ .....
ReplyDeleteसिर्फ वो ही वो ...अनंत.....
ReplyDeleteसुन्दर !!
ReplyDeleteकिसने जाना मैं हूँ कौन ???
ReplyDeleteसिर्फ ..मौन...मौन ,,मौन !
जीवन के सूक्ष्म को दर्शाती रचना
ReplyDeleteवाकई आपकी लेखनी में एक दर्शन होता है
बहुत ही सुंदर
अहम् ब्रह्माष्मी ****** आपने सम्पूर्ण श्रृष्टि को समेट लिया अद्भुत और अनूठा आनंद दायी ******
ReplyDeleteसुक्ष्म तत्व विवेचना करती सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
स्वयं को पहचानने का प्रयास सदैव करते रहना चाहिये.
ReplyDeleteजीवन दर्शन पर अनुपम प्रस्तुति.
बहुत ही सुन्दर लेख
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गहन भाव लिए सुंदर रचना
ReplyDeleteगहन भाव लिए रचना |
ReplyDeleteआशा
waah ..bahut badhiya
ReplyDeleteमै समिष्ट हूँ सं भाव लिए , बहुत ही सुंदर वर्णन । बधाई काली पद जी ।
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