वटवृक्ष
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चित्र गूगल से साभार
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सूक्ष्म हूँ जैसे
क्षुद्र बालू कण ,
होना है बड़ा , बनना है विशाल
सोचता हूँ हर क्षण।
मैं छोटा, बहुत ही छोटा जीव हूँ
किन्तु एक विन्दु में
एक सिन्धु छुपाकर रखता हूँ।
भ्रमित मत हो मानव
नहीं हूँ मैं कोई भुत, प्रेत या दानव ,
मैं तो प्राकृति की एक करिश्मा हूँ
मैं वटवृक्ष का एक क्षुद्र बीज हूँ।
प्रकृति ने सींचा उष्मा जल से
अंकुरित हुआ मैं दो पत्तियों से,
मुझे मिला धरती का सहारा
शनै: शनै: हुआ मैं बड़ा।
फैला जाल जड़ ,शाखा ,पत्तियों का
मिली पथिक को शीतल छाया
पक्षियों को रात्रि का रैन बसेरा।
क्षुद्र था मैं बीजरूप में ,काया है अब विशाल
नहीं है डर मुझे मौसम के तेवर का
ग्रीष्म , वर्षा हो या हो शीत,पतझड़।
मानता हूँ धन्य हुआ जीवन धरती पर
नि:संकोच हो, प्राणी विश्वास करते मुझपर।
पक्षियाँ झुण्ड में आकर बैठती है मेरे डाल पर
फुदक फुदक कर धूमती फिरती इस डाल से उस डाल पर।
उनकी चह चहाहट में संगीत सुनाई देता है
हवा में उल्लास और मन में शुकून पहुँचता है।
पशु थक कर विश्राम करते मेरे छावों में
मानव के डर से त्रस्त ,घूमते फिरते डरे डरे।
कुछ घडी शांति के उनको
जब दे पाता हूँ ,
जीवन का उद्देश्य पूरा हुआ
ऐसा अहसास कर पाता हूँ।
नारियां क्यों पुजती मुझे
नहीं है उसका ज्ञान ,
घूम घूम कर बाँधती धागे मुझे
राखी है या और बंधन,मैं हूँ अनजान।
किन्तु उनमे दृढ़ आस्था का
निश्चित अहसास है मुझे
दुआ करता हूँ ,पूरी हो मुराद
'वृक्षों में वह(वट )नारायण है'
ऐसा ही वे मानते हैं मुझे।
रचना : कालीपद "प्रसाद
©सर्वाधिकार सुरक्षित
सूक्ष्म से स्थूल की ओर चिंतन को प्रेरित करती गहन रचना बहुत खूब ******
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, "आस्था और पूरी हो मुराद" में शायद कुछ टंकण गलतिया है !
ReplyDeleteधन्यवाद गोदियाल जी !
Deleteबहुत सुन्दर रचना
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bahut sundar rachna
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
दुआ करता हूँ ... पूरी हो मुराद
ReplyDeleteबनी रहे यह आस्था और विश्वास .... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
आभार
जिसके क्षुद्र बीज में इतना बड़ा वटवृक्ष समाया रहता है निश्चित ही वह नारायण का रूप है तभी तो उसे पूजते हैं लोग .... वटवृक्ष की महत्ता का सुन्दर प्रस्तुतिकरन के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteआस्था विश्वास और क्षुद्र से विशालता की और जीवन का प्राणाय करते भाव लिए सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआस्था और परम्परा पर सुन्दर रचना...
ReplyDeleteवाह .. बहुत सुंदर ... अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ।
ReplyDeleteमैं था छोटा, प्रकृति ने क्या रूप दे डाला मुझे।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मन की बात ......
ReplyDeleteआस्था और विश्वास का प्रतीक वटवृक्ष... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteचिंतकपरक- जीवन के सूक्ष्म द्रष्टिकोण को परखती
ReplyDeleteगहन अनुभूति
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteआस्थाएं ही तो आधार हैं जीवन का...
सादर
अनु
BAHUT SUKHSM WARNAN ...BAHUT BADHIYA ...
ReplyDeleteगहन विचारानुभूती, सूक्ष्म से बृहद की तरफ उन्मुख करी रचना
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
ReplyDeleteमैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
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