किताबें बहुत पढ़ी, हासिल की
अनेक डिग्रियां
ढाई अक्षर प्रेम का अर्थ
क्या है, समझ नहीं पाया |
कसमें बहुत खाई ,वादे बहुत
किया ( ख़्वाब में )
ख्वाब टूटी,सब भूल गए,वादा
निभा नहीं पाया !
तुझे ढूंढ़ता रहा, कभी यहाँ
कभी वहाँ
दुनियाँ भूल भुलैया है
,तुझे ढूंढ़ नही पाया !
भ्रमित हूँ ,भटकता हूँ पागल
की तरह
हर चीज़ में तुम्हे
नहीं,तुम्हारी अक्स पाया,!
आँखों में अश्क की कमी है “प्रसाद “
अश्क-बारी भी नसीब नहीं हो
पाया !
कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
bahut badhiya
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत खूब ... दुनिया की भूल भुलैया में खो जाता है इंसान ...
ReplyDeletebahut hi sunder abhivyakti....
ReplyDeleteवाह ....बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
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