चाहता हूँ ,तुझे मना लूँ
प्यार से
लेकिन डर लगता है तेरी
गुस्से से !
घर मेरा तारिक के आगोश में
है
रोशन हो जायगा तेरी बर्के-हुस्न
से !
इन्तजार रहेगा तेरा क़यामत तक
नहीं डर कोई गमे–फ़िराक से !
मालुम है कुल्फ़ते बे-शुमार
हैं रस्ते में
इश्क–ए–आतिश काटेगा वक्त
इज़्तिराब से !
हुस्न तेरी बना दिया है
मुझे बे-जुबान
बताऊंगा सब कुछ ,तश्ना–ए–तकरीर
से |
शब्दार्थ : तारिक=अन्धकार
,अँधेरा ; बर्के हुस्न=बिजली जैसी चमकीला सौन्दौर्य : गमे –फ़िराक=विरह का दुःख : इश्क
–ए –आतिश =प्यार का आग : इज़्तिराब से=व्याकुलता से : तश्ना –ए – तकरीर=प्यासे
होंठो से
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
आपका आभार डॉ रूपचंद्र शास्त्री जी ! श्रीमती जी अस्वस्थ है इसीलिए ब्लॉग पर नियमित रूप से आ नहीं पा रहा हूँ |
ReplyDeleteशब्दों को समझने की कोशिश की है ,दिये हुए अर्थ का सहारा ले कर .
ReplyDeleteबहुत खूब ... उनके गुस्से से तो हर कोई डरता है ...
ReplyDeleteहुस्न तेरी बना दिया है मुझे बे-जुबान
ReplyDeleteबताऊंगा सब कुछ ,तश्ना–ए–तकरीर से
बेहतरीन
जय हिन्द
Behad lajawaab prastuti ... Aabhar !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा है। शब्दों के अर्थ से बहुत सहारा मिला है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteप्रगाढ़ अनुभूति सूफियाना इश्क की .सुन्दर मनोहर .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ! शास्त्रीय उर्दू का स्वागत !
ReplyDeletebahot khub rachna......!!!
ReplyDelete