पुलिस ढूंढ़ती रही
..चोर उचक्के कहीं नहीं मिले
आश्रम में झंका, सब
सन्त-बाबाओं के वेश में मिलेl
होता था सन्तों का
सत्संग आश्रम में पहले
एकांतवास में,चेलिओं के बाहों में अब सन्त मिले l
जनता को पाँच साल
तक,कोई डाकू लुटेरा नहीं मिले
पांच साल के बाद,व्होट की भीख मांगते सब द्वार पर मिले l
नेता और सन्त ,चोली
दामन का है साथ
काली कमाई को सफ़ेद
करने ,एकसाथ मिले l
सबके चहरे पर मुखौटे
हैं ,नकली है सबके चोले
मुखौटे-चोले उतर गये
तो ,अन्दर सब कौवे निकले l
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
उम्दा रचना
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-03-2015) को "नीड़ का निर्माण फिर-फिर..." (चर्चा अंक - 1916) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी l
Deleteबहुत खूब ... सभी को खरी खरी सुने है ... पर सच कह है ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
लाजवाब लिखा है आपने....बहुत सुंदर.
ReplyDeleteउम्दा लेखन
ReplyDeleteउम्दा लेखन
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