सुना है मैं ने
रब है कण कण में
बोलने की जरुरत नहीं
जान लेते है सब कुछ
जो है तुम्हारे मन में l
गर फूस फुसकर कहोगे
फिर भी उनके श्रव्य से
बच नहीं पायोगे l
अगर यही सच है,
तो यह विरोधाभास क्यों है?
मंदिर में पंडित
मस्जिद में मुल्ला
क्यों भोंपू लगाकर
ईश्वर अल्लाह को बुलाते है ?
क्या जन कोलाहलों में
ईश्वर अल्लाह बहरे हो गए हैं ?
मेरे पास न बुलंद आवाज़ है
न मेरे पास कोई भोपू है
क्या ईश्वर अल्लाह मेरी
दुर्बल आवाज़ से अनजान है ?
कालीपद "प्रसाद"
रब है कण कण में ... पर इंसान समझता कहाँ है ... उसको खोजता ही नहीं ....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-03-2015) को "मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती" (चर्चा अंक - 1921) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी !
Deleteउत्तम रचना
ReplyDeletesach kaha....ek din beti ney yahi prshn pucha tha sab itna chilla kar kyu arti karte hain....aram say shant sawar mey kyu nahi ..
ReplyDeleteयही प्रश्न हर जागरूक व्यक्ति के मन में है ! आभार
ReplyDeleteयही प्रश्न हर जागरूक व्यक्ति के मन में है !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना।
ReplyDeleteउत्तम रचना
ReplyDeleteहम भूल गए हैं कि ईश्वर केवल सच्चे मन की प्रार्थना ही सुनता है. लेकिन सभी लकीर के फकीर बने हुए हैं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बधाई
ReplyDeleteमैन भी ब्लोग लिखता हु और आप जैसे गुणी जनो से उत्साहवर्धन की अपेक्षा है
http://tayaljeet-poems.blogspot.in/