Thursday 12 March 2015

सन्त ,साधू और नेता (व्यंग )





पुलिस ढूंढ़ती रही ..चोर उचक्के कहीं नहीं मिले
आश्रम में झंका, सब सन्त-बाबाओं के वेश में मिलेl


होता था सन्तों का सत्संग आश्रम में पहले
एकांतवास में,चेलिओं के बाहों में अब सन्त मिले l

जनता को पाँच साल तक,कोई डाकू लुटेरा नहीं मिले
पांच साल के बाद,व्होट की भीख मांगते सब द्वार पर मिले l

नेता और सन्त ,चोली दामन का है साथ
काली कमाई को सफ़ेद करने ,एकसाथ मिले l

सबके चहरे पर मुखौटे हैं ,नकली है सबके चोले
मुखौटे-चोले उतर गये तो ,अन्दर सब कौवे निकले l 



कालीपद "प्रसाद " 
सर्वाधिकार सुरक्षित


8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-03-2015) को "नीड़ का निर्माण फिर-फिर..." (चर्चा अंक - 1916) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आपका आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी l

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  2. बहुत खूब ... सभी को खरी खरी सुने है ... पर सच कह है ...

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  3. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ !

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !

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  4. लाजवाब लिखा है आपने....बहुत सुंदर.

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  5. उम्दा लेखन

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