Monday 16 March 2015

सुना है मैंने !


सुना है मैं ने
रब है कण कण में
बोलने की जरुरत नहीं
जान लेते है सब कुछ
जो है तुम्हारे मन में l
गर फूस फुसकर कहोगे
फिर भी उनके श्रव्य से
बच नहीं पायोगे l
अगर यही सच है,
तो यह विरोधाभास क्यों है?
मंदिर में पंडित 
मस्जिद में मुल्ला
क्यों भोंपू लगाकर
ईश्वर अल्लाह को बुलाते है ?
क्या जन कोलाहलों में
ईश्वर अल्लाह बहरे हो गए हैं ?
मेरे पास न बुलंद आवाज़ है 
न मेरे पास कोई भोपू है 
क्या ईश्वर अल्लाह मेरी 
दुर्बल आवाज़ से अनजान है ?

कालीपद "प्रसाद"

11 comments:

  1. रब है कण कण में ... पर इंसान समझता कहाँ है ... उसको खोजता ही नहीं ....

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-03-2015) को "मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती" (चर्चा अंक - 1921) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आपका आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी !

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  3. sach kaha....ek din beti ney yahi prshn pucha tha sab itna chilla kar kyu arti karte hain....aram say shant sawar mey kyu nahi ..

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  4. यही प्रश्न हर जागरूक व्यक्ति के मन में है ! आभार

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  5. यही प्रश्न हर जागरूक व्यक्ति के मन में है !

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  6. बहुत ही अच्‍छी रचना।

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  7. हम भूल गए हैं कि ईश्वर केवल सच्चे मन की प्रार्थना ही सुनता है. लेकिन सभी लकीर के फकीर बने हुए हैं...

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  8. बहुत सुन्दर बधाई
    मैन भी ब्लोग लिखता हु और आप जैसे गुणी जनो से उत्साहवर्धन की अपेक्षा है
    http://tayaljeet-poems.blogspot.in/

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