याँ कुछ लोग जीते भलों के लिए
जिओ जिंदगी दूसरों के लिए |
गुणों की नहीं माँग दुख वास्ते
सकल गुण जरुरी सुखों के लिए |
मैं गर मुस्कुराऊं, तू मुँह मोड़ ले
शिखर क्यूँ चढूं पर्वतों के लिए ?
मैं किस किस की बातें सुनाऊं यहाँ
जले शमअ कोई शमों के लिए |
मकाँ और दुकाने जो भी हैं यहाँ
जवाँ के लिए ना बड़ों के लिए |
© कालीपद ‘प्रसाद’
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