आपसी झगडा भूलकर बोलो, भारत एक परिवार है
एक स्वर में बोलो सभी, कश्मीर पूरा हमारा है |
अलग अलग हैं रहन सहन, अलग अलग है भाषा
अलग अलग खान पान हैं, अलग अलग वेश भूषा
मज़हब का कोई बंदिश नहीं, इबादत की आजादी है
विविधता में एकता है, यही हमारी अंतर्धारा है |
आपसी झगडा भूलकर बोलो, भारत एक परिवार है
एक स्वर में बोलो सभी, कश्मीर पूरा हमारा है |
पाक का नापाक मंशा को, होने ना देंगे सफल
आतंकी की हर कोशिश, हम कर देंगे बिफल
अलगाववादी हो सावधान, मन में तुम्हारे अँधेरा है
पाक पर ना करो विश्वास, वह तो अध्-मारा है |
आपसी झगडा भूलकर बोलो, भारत एक परिवार है
एक स्वर में बोलो सभी, कश्मीर पूरा हमारा है |
भारत के रहनुमाओं सुनो, ऐसा करो कुछ देश वास्ते
होगी शांति देश में गर, रंजिश मिटेगी आस्ते आस्ते
हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई, संस्कृति की चौ-धारा हैं
सब मिले भारत में जैसे, सागर में मिले बहु धारा हैं |
आपसी झगडा भूलकर बोलो, भारत एक परिवार है
एक स्वर में बोलो सभी, कश्मीर पूरा हमारा है |
© कालीपद ‘प्रसाद’
नवगीत तो नये बिम्बों को समाहित करके बनता है।
ReplyDeleteयह नवगीत नहीं है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-08-2016) को "भाव हरियाली का" (चर्चा अंक-2432) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'