ना करो ऐसे कुछ, रस्म जैसे निभाती हो
आरसी भी तरस जाता, तब मुहँ दिखाती हो |
आरसी भी तरस जाता, तब मुहँ दिखाती हो |
छोड़कर तब गयी अब हमें, क्यों रुलाती हो
याद के झरने में आब जू, तुम बहाती हो |
याद के झरने में आब जू, तुम बहाती हो |
रात दिन जब लगी आँख, बन ख़्वाब आती हो
अलविदा कह दिया फिर, अभी क्यों सताती होजिंदगी जीये हैं इस जहाँ मौज मस्ती से
अलविदा कह दिया फिर, अभी क्यों सताती होजिंदगी जीये हैं इस जहाँ मौज मस्ती से
गलतियाँ भी किये याद क्यों अब दिलाती हो |
प्रज्ञ हो जानती हो कहाँ दुःखती रग है
शोक आकुल हुआ जब, मुझे तुम हँसाती हो |
शोक आकुल हुआ जब, मुझे तुम हँसाती हो |
कहती थी मुँह कभी फेर लूँ तो तभी कहना
दु:खी हूँ या खफ़ा, तुम नहीं अब मनाती हो |
दु:खी हूँ या खफ़ा, तुम नहीं अब मनाती हो |
वक्सिसे जो मिली प्रेम के तेरे चौखट पर
भूलना चाहता हूँ, लगे दिल जलाती हो
भूलना चाहता हूँ, लगे दिल जलाती हो
कालीपद ‘प्रसाद
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 04/10/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आपका आभार कुलदीप ठाकुर जी
Deleteआभार आपका उपासना सिअग जी !
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