गीतिका ----नौ दुर्गा –प्रार्थना
बहर: २१२२ २१२२ २१२२ २१२
रदीफ़ : चाहिए ; काफिया : “आ”
नौ दिनों की माँग भक्तों की माँ सुनना चाहिए
वे बुलाते तो माँ उनके घर में आना चाहिए |
शांति की देवी तू, संकट मोचनी दुख नाशिनी
भक्त को सुख शान्ति का वर दान देना चाहिए |
खड्ग हस्ता, ढाल मुद्गर, शूल अस्त्रों धारिणी
विध्न वाधा नाश माँ इस वक्त होना चाहिए |
अम्बे गौरी श्यामा गौरी, तुम विराजत सब जगत
शत्रु घाती दुख विनाशी, तेरी करुणा चाहिए |
धूप कुमकुम पुष्प चन्दन से किया माँ आरती
भूल चुक जो भी मेरा सब माफ़ होना चाहिए|
© कालीपद ‘प्रसाद’
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-10-2016) के चर्चा मंच "जुनून के पीछे भी झांकें" (चर्चा अंक-2488) पर भी होगी!
ReplyDeleteशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका आ शास्त्री जी
ReplyDeleteआभार आपका आ शास्त्री जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दुर्गा स्तुति गान।
ReplyDeleteजय माता दी!