ईंट गारों से’ बना घर को’ मकां कहते है
प्यार जब बिकने’ लगे, दिल को’ दुकां कहते हैं |
प्यार जब बिकने’ लगे, दिल को’ दुकां कहते हैं |
क्या पता क्या हुआ’ दिनरात जले दिल मेरा
प्यार में गुल्म१ को’ तो लोग नशा कहते हैं |
प्यार में गुल्म१ को’ तो लोग नशा कहते हैं |
फलसफा जीस्त की, तकलीफ़ न देना औरों को’
गफलतों में’ गिरा इंसान बुरा कहते हैं |
गफलतों में’ गिरा इंसान बुरा कहते हैं |
आचरण नेता’ का’ विश्वास के’ लायक ही’ नहीं
इसलिए लोग उन्हें इर्स२ झूठा कहते हैं |
इसलिए लोग उन्हें इर्स२ झूठा कहते हैं |
जब तलक आस बनी रहती’ खिली’ रहती जीस्त
आसरा टूटने’ को लोग क़ज़ा कहते हैं |
आसरा टूटने’ को लोग क़ज़ा कहते हैं |
शब्दार्थ : १ गुल्म –सोहबत के लिए बेकरार होना
२ इर्स –गुण या काम पीढ़ी दर पीढ़ी चलना
(खानदानी)
२ इर्स –गुण या काम पीढ़ी दर पीढ़ी चलना
(खानदानी)
कालीपद ‘प्रसाद’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-03-2017) को
ReplyDelete"राम-रहमान के लिए तो छोड़ दो मंदिर-मस्जिद" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सटीक प्रस्तुति
ReplyDelete