हर अजीमत से मेरा
ज़ज्ब जवां होता है
देखता हूँ मैं कभी
दर्द कहाँ होता है |
बिन कहे जिसने किया
जीस्त के सब संकट नाश
नाम उसका खुदा रहमत
है या माँ होता है |
हाट जिसमें बिके
जन्नत की टिकिट धरती पर
नाम उसका यहाँ
धर्मों की दुकां होता है |
लोग ऐसे नहीं बदनाम
किसी को करते
आग लगती है तो हर ओर
धुआं होता है |
जो भी आया यहाँ सबकी
मिटी है हस्तियाँ
जिसने कुछ काम किया
उसका निशाँ होता है |
आपसी प्यार से ही
लोग जुड़े आपस में
बिन मुहब्बत के तो
घर एक मकां होता है |
हैं चतुर नेता सभी,
काम बताते कुछ भी
हर कदम में कोई इक
राज़ निहां होता है |
जज अदालत भले फटकार
लगाए उनको
रहनुमा को किसी से
शर्म कहाँ होता है |
अब पढ़ाई हो गई ख़त्म
सियासत आरम्भ
आज का देख ये हालात
गुमां होता है |
शब्दार्थ : अजीमत
=संकल्प ,निश्चय
ज़ज्ब = कशिश ,मोह ,
लगाव
कालीपद ‘प्रसाद’
दिनांक 07/03/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
सुक्रिया, स्वागत है आपका
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (07-03-2017) को
ReplyDelete"आई बसन्त-बहार" (चर्चा अंक-2602)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुक्रिया, स्वागत है आपका
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