Friday, 1 November 2019

गीतिका



जिंदगी जो जी रहा हूँ वह मेरा आज है
कर्म जो करता हूँ उसी पर बेशक नाज़ है |

जनता भोली भाली बेचारी गाय समान
रहनुमा बने ये आदम सब सट्टेबाज़ है  |

परिवर्तन प्रकृति का नियम, प्रगति का मूल वजह
बदली है रीति-रिवाज़, बदला यह समाज है |

सूर्य देता रश्मि, कवि फैलाता अक्षय ज्योति
सूर्य, शायर नहीं तारीफ के मोहताज़ है |

आज लिख रहा हूँ, आज शायद कोई न पढ़े
एक न एक दिन होगा पढने का आगाज़ है |

कविता, मुक्तक ग़ज़ल, गीतिका, दोहे छंद सब
लिखे सभी दिल से हम, उसीपर बहुत नाज़ है |

आयगा एक दिन जब इनको कोई पढेगा
उनको मज़ा आयगा ‘काली’ को अंदाज़ है |

कालीपद 'प्रसाद'


4 comments:

  1. सच आज का लिखा कोई न कोई बांचेगा जरूर
    एक दिन सबका आता है
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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    1. शुक्रिया कविता रावत जी ,आप पटल पर आई अच्छा लगा ,बहुत दिन मैं ब्लॉग से दूर रहा ,सोचा था ब्लॉग मके साथी मुझे भूल गए हैं |नमस्कार

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  2. शुक्रिया संजय भास्कर जी , नमस्कार !

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