जिंदगी जो जी रहा हूँ
वह मेरा आज है
कर्म जो करता हूँ उसी
पर बेशक नाज़ है |
जनता भोली भाली बेचारी
गाय समान
रहनुमा बने ये आदम सब
सट्टेबाज़ है |
परिवर्तन प्रकृति का
नियम, प्रगति का मूल वजह
बदली है रीति-रिवाज़,
बदला यह समाज है |
सूर्य देता रश्मि, कवि फैलाता
अक्षय ज्योति
सूर्य, शायर नहीं तारीफ
के मोहताज़ है |
आज लिख रहा हूँ, आज
शायद कोई न पढ़े
एक न एक दिन होगा पढने
का आगाज़ है |
कविता, मुक्तक ग़ज़ल, गीतिका,
दोहे छंद सब
लिखे सभी दिल से हम,
उसीपर बहुत नाज़ है |
आयगा एक दिन जब इनको
कोई पढेगा
उनको मज़ा आयगा ‘काली’
को अंदाज़ है |
कालीपद 'प्रसाद'
सच आज का लिखा कोई न कोई बांचेगा जरूर
ReplyDeleteएक दिन सबका आता है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
शुक्रिया कविता रावत जी ,आप पटल पर आई अच्छा लगा ,बहुत दिन मैं ब्लॉग से दूर रहा ,सोचा था ब्लॉग मके साथी मुझे भूल गए हैं |नमस्कार
Deleteबहुत बढ़िया सर ।
ReplyDeleteशुक्रिया संजय भास्कर जी , नमस्कार !
ReplyDelete