हे माँ दुर्गा !
आओं तुम दुर्गति नाशिनी !
नाश करो दु:ख कष्ट पीड़ित मानव का
हे सिंह बाहिनी !
आओं तुम दुर्गा रूप में
रक्षा करो नीरिह जन को और
बध करो कालेधन के स्वामी-महिषासुर को।
आओं तुम काली रूप में
रक्तहीन करो पीकर रक्त
भ्रष्टाचारी रक्तबीज को।
आओं तुम हंस-बाहिनी सरस्वती रूप में
परहित, जनहित भाव का संचार करो
स्वार्थी ,लोभी ,भ्रष्टाचारी शासकों में।
आओं तुम लक्ष्मी रूप में
अन्न की थाली लेकर हाथ में
बनकर अन्नपूर्णा गरीब के घर में।
विघ्न हरो सब शुभ काम में
लेकर साथ गजानन को,
रक्षाकरो भक्तों को दुष्टों से
लेकर साथ षडानन को।
हिंसा,द्वेष,ईर्षा,ज्वलन,घृणादि के विष से
ज़र ज़र है यह जगत,
नीलकंठ को भी साथ लाओ माँ
पीकर विष , निर्विष करने यह जगत।
स्वार्थी है पुत्र तेरा ,पर अवोध है, ज्ञानहीन है
यह तन, मन, धन, सब कुछ तो है "पद-प्रसाद " तेरा।
शरद ऋतु,आश्विनमास,शुक्ल-पक्ष-प्रतिपद
नतमस्तक स्वागत करते हैं तुम्हे
हे माँ नौ-दुर्गे ! मिलकर इष्ट मित्र सब।
!!! जय माँ दुर्गा !!!
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
मां दुर्गा ... सभी की सद्इच्छाओं को पूर्ण करें ...
ReplyDeleteनवरात्रि की अनंत शुभकामनाएं
बहुत अच्छी कामना माँ से
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html
ReplyDeleteमाँ हर कामना पूरी करे..विजय दश्मी की हार्दिक शुभकामनायं....
ReplyDeletekya baat he aapki kalaa ka ye rang bhi......padh kar achha laga.....kavita ke itne ras likh pana aasaan nahi.....badhayee!
ReplyDeleteJai Mata Di!
Ehsaas....