Sunday, 8 May 2016

माँ

                                                     

                                      माँ

अचेत अबोध शिशु को, सीने से लागाकर तू माँ
बड़ा किया उसको अपने खून से, सींचकर तू माँl |

अंगुली थामकर क़दमों पर, चलना सिखाया मुझको 
इंसान बनाया मुझको,  संस्कार से सींचकर तू माँl |

जाग-जागकर रात को खुद, मुझको थपकी लगायी
मुझको सुलाती थी, लोरी के धुन सुना कर तू माँl |

पढने लिखने की प्रेरणा मुझको, तुझसे मिली माँ
आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसका रचनाकार तू माँ |

तू ही ब्रह्मा, तू ही विष्णु, तू ही मेरा प्रथम गुरु 
तू जननी है मेरी अस्तित्व की, मेरे संस्कार तू माँ |

किया नाश मेरे दुर्गुणों का, तू ही शिवारूपा हो मेरी माँl
कभी प्यार से डांटकर, कभी बक्र भृकुटी दिखाकर तू माँ |

तेरे चरण-कमलों में, श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ मैं
जिंदगी के हर संकट में, तेरा हाथ रख मेरे सर पर तू माँl |


© कालीपद ‘प्रसाद’

5 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण और माँ के लिए प्रेम का सुन्दर अहसास

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  2. मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-05-2016) को "सब कुछ उसी माँ का" (चर्चा अंक-2337) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. सुंदर प्रस्तुति।

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