Tuesday, 1 November 2016

मिटटी के दिये






मिटटी से मेरा जनम हुआ, मिटटी में मिल जाता हूँ
छोटी सी है जिंदगी मगर, जगत को जगमगाता हूँ |

दीवाली हो या होली हो, प्रात:काल या सबेरा
जब भी जलाया मुझे तुमने, किया दूर सब अन्धेरा |
जलना ही मेरी नियति बनी, जलकर प्रकाश देता हूँ
मिटटी से मेरा जनम हुआ, मिटटी में मिल जाता हूँ
छोटी सी है जिंदगी मगर, जगत को जगमगाता हूँ |

धनी गरीब या राजा रंक, सबका ही मै हूँ प्यारा
मेरी रौशनी तामस हरती, मानते हैं जगत सारा
भेद भाव नहीं करता कभी, सबके घर मैं जाता हूँ
मिटटी से मेरा जनम हुआ, मिटटी में मिल जाता हूँ
छोटी सी है जिंदगी मगर, जगत को जगमगाता हूँ |

मिले तुम्हे प्यार सम्मान सब, ख़ुशी ख़ुशी मुझे जलाना
भूलकर डाह दुःख दर्द तुम, जीवन में खुशियाँ लाना
जलती बाती ज्ञान-प्रीत की, लेकर यश मैं जाता हूँ
मिटटी से मेरा जनम हुआ, मिटटी में मिल जाता हूँ
छोटी सी है जिंदगी मगर, जगत को जगमगाता हूँ |


© कालीपद ‘प्रसाद




                                                                               

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "जीवन के यक्ष प्रश्न - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. शुभकामनाएँ ।

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