Tuesday, 19 June 2012

!ईश्वर !
ईश्वर    ही सत्य है . ईश्वर ही  नियन्ता है .उस पर विस्वास रखों . जो तुम्हारे नियन्त्रण में नही है , वह उसके नियंत्रण में  हैं .
ईश्वर  एक हैं . राम ,रहीम,गाड़ ,बाहेगुरू ,  अल्लाह ,  आदि  अलग अलग नाम से  अलग अलग लोग उसे  पुकारते-पूजते  हैं .श्री श्री राम कृष्ण  परम हँस जी  ने कहा  कि पानी को लोग अलग अलग भाषा में जल ,पानी , वाटर , पय इत्यादि नाम से पुकारते हैं .परन्तु वस्तु (जल ) तो एक है . ठीक वैसे ही भाषा ,देश , काल के अनुसार एक ही इश्वर के अलग अलग नाम हैं .
                             ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं .  ईश्वर पर भरोषा रखना चाहिए , ईश्वर पर भरोषा रखने का मतलब धर्म पर या कर्म कांड पर भरोषा रखना नही है .धर्म एक रास्ता है जिस पर चलकर लोग ईश्वर तक पहुँचते हैं . रास्ता अलग अलग हो सकते हैं  परन्तु मंजिल (ईश्वर )एक हैं . आवश्यक नही कि तुम पूराने घिसे पिटे  रास्ते पर चलो और कर्मकाण्ड के जंजाल में पड़ो . तुम अपने नए रास्ते पर चल सकते हो जैसे कि गौतम बुद्ध  ने  किया ,महवीर जी ने किया ,स्वामी दयानन्द जी ने किया .
                            ईश्वर सर्वव्यापी हैं .मंदिर , मस्जिद , गिरजाघर ,गुरुद्वारे के चार दीवारों की परिधि में बँधे नहीं हैं . वह तो असीम हैं ,अनन्त हैं ,सर्वत्र हैं. तुम जहाँ खड़े हो जाओगे ,ईश्वर तुमसे पहले वहाँ होंगे . मनमें अगर तुम उनकी होने की अनुभूति प्राप्त कर सको तो तुम्हे ईश्वर को ढूडने के लिए  मंदिर , मस्जिद , गिरजाघर ,गुरुद्वारे में जाने की आवश्यकता नहीं है . तुम्हारे मन ही मंदिर है . तुम्हारे   अश्रु ही गँगाजल है , भावना  ही पूजा है , भावना ही पूजा का फूल है, भावना ही फूलों की खुशबु है .ईश्वर को वही चाहिए और कुछ नहीं .


ईश्वर सबका कल्याण करें .

कालीपद "प्रसाद "

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