बे-शरम दरिंदें !
बलात्कार! ...बलात्कार!! ......बलात्कार!!! हर जगह यही शब्द गूंज रहा है ,दिमाग झन्ना गया ,दिल दहल गया। मन में गुस्सा ,आक्रोश भर गया , यही भावना घनीभूत होकर शब्द रूप लेकर बह निकला उन बे- शरम दरिंदों को तिरष्कृत करने।
सुबह अख़बार पढता हूँ
समाचार ?.... ......बलात्कार
टी व्ही के कोई भी चेनेल देखूं
समाचार? .....हत्या, बलात्कार,
कभी मासूम बच्ची उम्र पांच साल ,
कभी सात कभी तेरह कभी अस्सी साल,
बच्ची ,युवती ,बूढी ,सब हैं हवस के शिकार।
कौनसा उम्र बचा है बलात्कारियों से ?
समाज शास्त्रियों ! जरा पता लगाओ बारीकी से।
जरा बताओ उन बेशरम दरिंदों को
पांच ,सात साल की बच्ची तो तुम्हारी बेटी होगी
अस्सी साल की औरत, तुम्हारी माँ या दादी होगी
माँ ,बेटी तुल्यों से बलात्कार ? तुम्हे शर्म नहीं आती है ?
क्यों बाहर का हवा दूषित करते हो ? वे तो तुम्हारे घरमे है।
तुम मानव हो ? दानव हो ? या नर-पशु हो ?
मानव ,दानव के परिवार में माँ ,बहन होती है
पशुयों में ऐसा कोई आचार विचार नहीं है।
हाँ ,तुम नर-पशु हो ,पशु बलि में चढ़ाया जाता है
तम्हे भी चढ़ना होगा ,मानवता के बलिवेदी पर
खानी होगी पीठ पर गोली या झुलना होगा फांसी के झूले पर।
क्योकि,
तुमने नासूर ज़ख्म दिया है
मानवता के तन मन पर।
तन का ज़ख्म तो भर जायगा
मन का जख्म का क्या होगा ?
कराह रही है तुम्हारी वहशीपन देखकर
केवल पीडिता नहीं ,
बेहाल है तुम्हारी माँ ,बहन रो रो कर।
माँ तुम्हारी सोचती होगी ...............
'गर्भ में क्यों ना ख़त्म कर दिया ,
सद्यजात शिशु को क्यों नहीं जहर पिला दिया ?
ना मुझे यूँ शर्मिन्दगी झेलनी पड़ती
ना यूँ घुट घुट कर मौत का इन्तेजार करनी पड़ती। '
पर वे ये पीड़ा बता नहीं पा रही है
ना उसे सहन कर पा रही है
केवल शर्म से मुहँ ढक कर
तुम्हारे या खुद की मौत का इन्तेजार कर रही है।
रचना : कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित ..
बहुत दर्दभरी रचना ! सच में वे माता पिता किसी से आँखें नहीं मिला पाते होंगे जिनके बेटे ऐसे जघन्य अपराधों में संलग्न पक़ड़े जाते होंगे !
ReplyDeletesarthak post .., samaj ka kadva sach
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete5 -मई तक ब्लॉग जगत से दूर हूँ-
कमतर कमकस कमिश्नर, नर-नीरज पर दाग ।
कफ़नखसोटी में लगा, लगा रहा फिर आग ।
लगा रहा फिर आग, कमीना बना कमेला ।
संभले नहीं कमान, लाज से करता खेला ।
गृहमंत्रालय ढीठ, राज्य की हालत बदतर ।
करे आंकड़े पेश, बताये दिल्ली कमतर ॥
कमकस=कामचोर
कमेला = कत्लगाह (पशुओं का )
भावों से भरी ,घावों से भरी ,आक्रोश से भरी रचना ...बहुत बढियां सर |
ReplyDeleteये रोष ये दर्द सब के मन को रुला रहा है..भावपूर्ण प्रस्तुति.आभार
ReplyDeletenaasoor ban jate hain rishte ....
ReplyDeleteये मनुष्य कहाँ दरिन्दे होते हैं जल्द सरकार सजा दे...
ReplyDeleteसरकार सिर्फ सजा सूना सकती है,,,ऐसे लोगों को कठोर सामाजिक दंड मिलना चाहिए,ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए समाज को भी जिम्मेदारी लेनी होगी,
DeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनिशब्द............
ReplyDeleteवर्तमान में हो रही दरंदगी को धिक्कारती
ReplyDeleteभावपूर्ण अर्थमय रचना
साधुवाद
दस्ताने दर्द की तस्बीर,भाव, उत्तेजना ,आक्रोश से भरी सुन्दर रचना
ReplyDeleteहर बार लगता है कि कोई पुराना घाव कुरेद गया।
ReplyDeleteहरेक के दिल की बात लिख दी है आपने उन दरिंदों को जानवर भी नहीं कह सकते जानवरों के भी कुछ कायदे कानून होते हैं,बहुत मार्मिक अब कुछ कहते नहीं बन रहा !!!
ReplyDeleteदरिंदगी निरंतर जारी है... समाज में बहुत बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है... गंभीर रचना
ReplyDeleteकन्या भूर्ण हत्या पर रोक लगे ...इसके लिए मुहिम छेड़ी जा चुकी है ...फिर बलात्कार के खिलाफ कुछ क्यों नहीं हो रहा ....इसके लिए दोषी कौन ??????
ReplyDeleteअनु जी परिवर्तन घर से ही शुरू करना पड़ेगा ,बेटे बेटी में बेदभाव ख़त्म करना होगा.लड़कों को सिखाना पड़ेगा कि लड़कियां किसी मामले में तुम से कम नहीं वरन कई मामले में तुम से आगे है.तुम्हे उनको आदर के दृष्टि से देखना है. साथ साथ भारतीय नैतिक शिक्षा घर में ही देना पड़ेगा क्योकि सरकार ने तो स्कूलों में नैतिक शिक्षा बंद कर दिया
Deleteहर किसी के मन में रोष है ... सब कुछ न कुछ करना चाहते हैं ...
ReplyDeleteअपने अंदर से ये शुरुआत इसी वक्त से कर देनी चाहिए ... ओर हर मुहीम मिएँ सहयोगी होना चाहिए ...
अब बेटों को नैतिकता सिखाने की बारी आ गयी है.
ReplyDeleteआभार कुलदीप ठाकुर जी !
ReplyDeleteसबके मन में रोष के साथ यही आक्रोश फूट रहा है ...
ReplyDeletehum sabkay man mey aise hi vichar aa rahe hai...dardbhari rachna
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली पोस्ट .......समाज को सार्थक दिशा देती हुई आपकी यह पोस्ट वर्तमान परिवेश में अधिक मूल्यवान हो जाती है । बलात्कार जैसी समस्या की जड पर प्रहार करना अति आवश्यक है .......हमें गूगल, फिल्मो व पत्र पत्रिकाओं एवम पोस्टरों से अश्लीलता हटानी होगी साथ ही बच्चों के बेसिक पाठ्य क्रम में भी जागरूकता के अध्याय सम्मिलित करने होगे । इसके अलावा सभासद ग्रामप्रधान शिक्षको , के साथ ही बलात्कारी के समाज को भी दंड में सहभागिता लेनी होगी । अब ऐसा प्रतीत होता है की बिना सामूहिक दंड के समाज भी जागने वाला नहीं है ।
ReplyDeletesamaj me jitna aakrosh hai vo sabke dil ke dard ko bayan karta hai ...........
ReplyDeleteमार्मिक .
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण, मार्मिक, सटीक और शानदार प्रस्तुति | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
दुखद , लाचार स्थिति है । परिवार में निरन्तर मूल्यों का ह्रास्य होरहा है । वहीं से सुधार प्रारम्भ करना होगा ।
ReplyDeleteमर्मिक रचना । संदेश सफलता पूर्वक पाठक तक पहुचता है ।
प्रभावशाली अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteबहुत दर्दभरी रचना !
ReplyDeleteकालीपद प्रसाद जी आपने प्रत्येक व्यक्ति के मन की भडास को बाहर निकाला है। अफसोस है कि मन्युष्य मानवियता छोड वहशियत पर उतर आया है।
ReplyDeleteshayad isase jyada vibhats kalug nahi hoga.
ReplyDeleteshayad isase jyada vibhats kalug nahi hoga.
ReplyDeleteदर्दनाक चित्रण...
ReplyDeleteमार्मिक
दुखद.....जो हो रहा है शर्मनाक ......क्षमा की भी गुंजाइश नहीं
ReplyDeletesamayik vishay par marmik lekhan ..sunder
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है स्थिति की गंभीरता को बड़ी सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
ReplyDeleteमैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
वेबसाइट
thanks Aim motivational quotes
ReplyDeletevery nice inspirational quotes about women
ReplyDelete
ReplyDeletevery nice inspirational quotes about life and happiness
Nicw blog ChaluBaba
ReplyDelete