हिन्दू धर्म में श्रीराम और श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का मानव रूप में सर्वोतम अवतार माना गया है। इसलिए उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाता है लेकिन भगवान का क्या वास्तविक स्वरुप है कोई नहीं जानता। सबके मन में एक ही जिज्ञासा है- " भगवान का प्राकृतिक रूप क्या है ? कहाँ रहते हैं ?" यही शाश्वत प्रश्न प्रार्थना के माध्यम से स्वयं ईश्वर से ही पूछा गया है ।
तुम अनन्त ,तुम दिगन्त , सर्वव्यापी सर्वेश्वर
तुम ही संभाव्य ,सम्भावना , तुम ही हो सिरजनहार।
अन्तर्निहित शक्ति हो तुम ,तुम ही प्रेरणा ,तुम ही कर्ता
तुम ही दाता ,दान का द्रव्य हो, तुम ही हो स्वीकार कर्ता।
सर्व शस्त्र-धारक हो तुम , सर्वस्वरुप ,सर्व शाक्तिमान हो
तुम ही शासक,हम शासित , हमपर तेरी अनुकम्पा हो।
हुकूमत तेरी चलती है जग में , कुछ करो कृपा हम पर
तुम्हे कहते है जगत्पति परमेश्वर,जग श्रष्टा जगदीश्वर।
मुझे बताओ हे विधाता! कौन हो तुम? कैसे हो ? रहते हो कहाँ ?
ढूंढते फिरते हम तुम्हे ,मंदिर ,मस्जिद ,हर धर्म के इबादत जहाँ।
हवा हो कि पानी हो या विजली या बादल का गर्जन हो ?
नील गगन अन्तरिक्ष हो या हरित अलंकार से सजी धरती हो ?
धधकते सूरज की ज्वाला हो या चन्द्रकिरण की शीतलता हो ?
नंगे-ख़ल्क की भूख की तड़फ हो या शहंशाहों की विलासिता हो ?
मन की भाव हो या भावना हो ,है क्या कोई वाह्य स्वरुप ?
जानू मैं कैसे तुम्हे ? जब देखा नहीं कभी कोई रंग रूप।
पूजा क्या है ? नहीं पता... ,पर श्रद्धा- भक्ति है मेरे पास
गुणगान करना पूजा है तो ..... , सही शब्द नहीं मेरे पास।
कर्मकाण्ड,विधि विधान छोड़,श्रद्धा सुमन अर्पण करता हूँ चरणों में
अकिंचन मान स्वीकार करना इसे ,सिक्त है यह कोमल भावनायों में।
क्या करूँ अर्पित पूजा में ,तन-मन-प्राण सबकुछ दिया तुम्हारा
इस जगत में जो कुछ है , उसमे कुछ भी तो नहीं है मेरा।
जीव- निर्जीव ,ग्रह नक्षत्र सब, चलरहे है मर्जी से तम्हारी
साँस प्रसाँस भी नहीं चलती मेरी ,जब तक न हो मर्जी तुम्हारी।
तब क्यों हठ लगाए बैठे हो , यह कैसा है न्याय तुम्हारा
जबतक कुछ ना अर्पित करू तुम्हे ,नहीं दोगे मुझे सहारा?
सोचकर बताओ हे मुरारी ,जो कुछ है जग में ,उसमे क्या है मेरा
जिसको लेकर, हठ टूटेगा और दिल खुश होगा तुम्हारा।
जो कुछ है सबकुछ ले लो ,अर्पित है तुम्हे ,मैं भी तुम्हारा
भूल ना जाना ,मुहं मत फेरना, तुम्ही हो नाविक,मेरा सहारा।
रचना : कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
चित्र गूगल से साभार |
तुम अनन्त ,तुम दिगन्त , सर्वव्यापी सर्वेश्वर
तुम ही संभाव्य ,सम्भावना , तुम ही हो सिरजनहार।
अन्तर्निहित शक्ति हो तुम ,तुम ही प्रेरणा ,तुम ही कर्ता
तुम ही दाता ,दान का द्रव्य हो, तुम ही हो स्वीकार कर्ता।
सर्व शस्त्र-धारक हो तुम , सर्वस्वरुप ,सर्व शाक्तिमान हो
तुम ही शासक,हम शासित , हमपर तेरी अनुकम्पा हो।
हुकूमत तेरी चलती है जग में , कुछ करो कृपा हम पर
तुम्हे कहते है जगत्पति परमेश्वर,जग श्रष्टा जगदीश्वर।
मुझे बताओ हे विधाता! कौन हो तुम? कैसे हो ? रहते हो कहाँ ?
ढूंढते फिरते हम तुम्हे ,मंदिर ,मस्जिद ,हर धर्म के इबादत जहाँ।
हवा हो कि पानी हो या विजली या बादल का गर्जन हो ?
नील गगन अन्तरिक्ष हो या हरित अलंकार से सजी धरती हो ?
धधकते सूरज की ज्वाला हो या चन्द्रकिरण की शीतलता हो ?
नंगे-ख़ल्क की भूख की तड़फ हो या शहंशाहों की विलासिता हो ?
मन की भाव हो या भावना हो ,है क्या कोई वाह्य स्वरुप ?
जानू मैं कैसे तुम्हे ? जब देखा नहीं कभी कोई रंग रूप।
पूजा क्या है ? नहीं पता... ,पर श्रद्धा- भक्ति है मेरे पास
गुणगान करना पूजा है तो ..... , सही शब्द नहीं मेरे पास।
कर्मकाण्ड,विधि विधान छोड़,श्रद्धा सुमन अर्पण करता हूँ चरणों में
अकिंचन मान स्वीकार करना इसे ,सिक्त है यह कोमल भावनायों में।
क्या करूँ अर्पित पूजा में ,तन-मन-प्राण सबकुछ दिया तुम्हारा
इस जगत में जो कुछ है , उसमे कुछ भी तो नहीं है मेरा।
जीव- निर्जीव ,ग्रह नक्षत्र सब, चलरहे है मर्जी से तम्हारी
साँस प्रसाँस भी नहीं चलती मेरी ,जब तक न हो मर्जी तुम्हारी।
तब क्यों हठ लगाए बैठे हो , यह कैसा है न्याय तुम्हारा
जबतक कुछ ना अर्पित करू तुम्हे ,नहीं दोगे मुझे सहारा?
सोचकर बताओ हे मुरारी ,जो कुछ है जग में ,उसमे क्या है मेरा
जिसको लेकर, हठ टूटेगा और दिल खुश होगा तुम्हारा।
जो कुछ है सबकुछ ले लो ,अर्पित है तुम्हे ,मैं भी तुम्हारा
भूल ना जाना ,मुहं मत फेरना, तुम्ही हो नाविक,मेरा सहारा।
रचना : कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteराम = रा = रौशनी म = मैं
मुझ में जो रौशनी है वो राम है
रामनवमी की मंगल कामना ,प्रेम श्रधा आस्था और समर्पण से जुडी सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteज्ञात तुम्हें करना चाहूँ, जो ज्ञात तुम्ही से हो पाये।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ... रामनवमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteरामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें,,,,,,
RECENT POST : प्यार में दर्द है,
bahut sundar Rachna ...
ReplyDeleteRam navni ke parv ki subhkamnaye
परमात्मा अकर्ता है अभोक्ता है अजन्मा है अलबत्ता उसके भी कर्तव्य हैं सृष्टि की त्रिमूर्ति (ब्रह्मा -विष्णु -महेश )से स्थापना ,पालना ,और आज जैसी मैली होने पर सफाई करवाना .
ReplyDeleteरामनवमी की शुभकामनायें ! बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ रची हैं, प्रभु राम को नमन
ReplyDeletesundr bhaav.
ReplyDeleteRam navami ki shubhkaamnaayen!
आभार वंदना जी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ... आपको रामनवमी की शुभकामना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति भक्ति भाव से ओतप्रोत रचना , रामनवमी की शुभकामना
ReplyDeleteअति सुंदर प्रस्तुति,रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeletebahut hi sunder prathana .
ReplyDeleteसुन्दर वर्णन , लिखते रहिये ...
ReplyDeleteरामनवमी की शुभकामनायें
bhaktimay rachna .....
ReplyDeleteराम जगत में रम रहे, सबके पालनहार।
ReplyDeleteसमय आ गया अब प्रभो,लो फिर से अवतार।।
बहुत सुन्दर आदरणीय -
ReplyDeleteबधाई ||
सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteपुजा क्या है नहीं पता... पर श्रद्धा भक्ति है मेरे पास
गुणगान करना अगर पूजा है तो... सही शब्द नहीं मेरे पास...
कुछ ऐसे ही विचार मेरे भी हैं...
समर्पण और आस्था
ReplyDeleteसुन्दर आध्यात्मिक प्रस्तुति . बहुत बहुत शुभकामनायें जिम्मेदारी से न भाग-जाग जनता जाग" .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-2
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संस्कृतनिष्ठ भाषा तथा शाब्दी गवेषणा के साथ वर्तनी -विच्छेद भाव प्रधान रचना !
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही ज्ञान वर्धक है, मैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
ReplyDeleteवेबसाइट