Sunday, 30 August 2015

क्षणिकाएँ

             

विवेक को बनाओ जज, मन होगा रस्ते पर
सचाई के संगत में, विवेक पहरेदार |
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साम-दाम-दण्ड व भेद, स्वार्थ-नीति हैं सब
स्वार्थी नेता सोचते, उनके दास हैं सब |
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नहीं धार्मिक यहाँ नर, हो गया साम्प्रदायिक
नफ़रत, हिंसा में विश्वास, विसरे आध्यात्मिक |
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कर्म से बढ़कर न धर्म, न आगे कोई तप
मानव बन जाते देव, पाते देव प्रताप |
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मानव की चाहत मोक्ष, नही छोड़ता मोह
कांचन, कामिनी और, लोभ बढ़ाते मोह |
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हिन्दू जपते राम नाम, ईशाई का गॉड
अनेक है नाम रब का, ईश्वर, अल्ला, गॉड |
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लोगों के दिलों को मैं, छूना चाहता हूँ
धर्म मार्ग में भरोसा, करना चाहता हूँ |
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मानव जीवन में करे, जो अच्छा कर्म यहाँ
उसे मिले मोक्ष जग से, मिले प्रशंसा यहाँ |
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© कालीपद ‘प्रसाद’




8 comments:

  1. वाह बहुत खूब ... आनंद आ गया दोहे पढ़ कर ...

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  2. सुन्दर दोहे

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  3. सुन्दर विचार व दोहे...

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  4. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  5. बहुत ही सुंदर दोहे ।

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