विवेक को बनाओ जज, मन होगा
रस्ते पर
सचाई के संगत में, विवेक
पहरेदार |
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साम-दाम-दण्ड व भेद,
स्वार्थ-नीति हैं सब
स्वार्थी नेता सोचते, उनके
दास हैं सब |
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नहीं धार्मिक यहाँ नर, हो
गया साम्प्रदायिक
नफ़रत, हिंसा में
विश्वास, विसरे आध्यात्मिक |
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कर्म से बढ़कर न धर्म, न आगे
कोई तप
मानव बन जाते देव, पाते देव
प्रताप |
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मानव की चाहत मोक्ष, नही
छोड़ता मोह
कांचन, कामिनी और, लोभ
बढ़ाते मोह |
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हिन्दू जपते राम नाम, ईशाई
का गॉड
अनेक है नाम रब का, ईश्वर,
अल्ला, गॉड |
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लोगों के दिलों को मैं,
छूना चाहता हूँ
धर्म मार्ग में भरोसा, करना
चाहता हूँ |
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मानव जीवन में करे, जो
अच्छा कर्म यहाँ
उसे मिले मोक्ष जग से, मिले
प्रशंसा यहाँ |
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© कालीपद ‘प्रसाद’
वाह बहुत खूब ... आनंद आ गया दोहे पढ़ कर ...
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteसुन्दर दोहे
ReplyDeleteआपका आभार
Deleteसुन्दर विचार व दोहे...
ReplyDeleteआपका आभार
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत ही सुंदर दोहे ।
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