Monday, 3 August 2015

भ्रम


भारत में यह भ्रम है ,कि लोग बहुत धार्मिक है

क्या मंदिर ,मस्जिद ,चर्च जानेवाले सब भक्त हैं ?

संत-साधू के प्रवचन में ,भीड़ तो काफी होती है

कुछ ही होंगे सच्चरित्र ,बाकी के चरित्र गायब है |

उपदेशों को कोई नहीं मानता ,न बनते सदाचारी

भ्रष्ट-आचरण, लुट का साधन, बन जाते हैं भ्रष्टाचारी |

उच्च आदर्श की बात करते हैं ,काम उनके नीच है                 

कथनी और करनी में, ज़मीन आसमा का अंतर है |

कौन अच्छा कौन बुरा ,पहचानना मुश्किल है

घर के बाहर सबके चेहरे ,मुखौटा में छुपे है |

खुले बाज़ार का ज़माना है ,अपना ढोल पीट रहे हैं

मार्केटिंग का गुर है ,अपनी तारीफ खुद कर रहे हैं |

अभी-अभी कलम पकड़ा ,खुद को पंडित समझते हैं

गुरु का गुण आया नहीं, खुद को जगत-गुरु मानते है |

भ्रम में जीते, भ्रम में मरते, औरों को भी भ्रमित करते हैं

भ्रम का अँधेरा कब छटेगा, भारत को इसका इंतज़ार है |

© कालीपद ‘प्रसाद’

2 comments:

  1. आप की लिखी ये रचना....
    05/08/2015 को लिंक की जाएगी...
    http://www.halchalwith5links.blogspot.com पर....


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  2. धन्यवाद कुलदीप ठाकुर जी !

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