पूर्णिमा का चाँद है
या दूध का कटोरा है
उबलता दूध ज्यों
चाँदनी का उफान है ,
धरती और अम्बर में
फ़ैल गयी है चाँदनी
रजनी भी ओड ली है
दुधिया रंग की ओडनी,
पवन भी मस्त है
रातरानी के इश्क में
अनंग को जगा रहा है
आशिकों के दिल में |
सागर भी उछल रहा है
चाहत है छुए चाँद को
लहर से पीट रहा है
अपने विशाल सीने को |
© कालीपद ‘प्रसाद’
Sunder Rachna
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-08-2015) को "आया राखी का त्यौहार" (चर्चा अंक-2082) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार डॉ रूपचंद्र शास्त्री जी !
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteसुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
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