Friday, 28 August 2015

चाँद



पूर्णिमा का चाँद है

या दूध का कटोरा है

उबलता दूध ज्यों

चाँदनी का उफान है ,

धरती और अम्बर में

फ़ैल गयी है चाँदनी

रजनी भी ओड ली है

दुधिया रंग की ओडनी,

पवन भी मस्त है

रातरानी के इश्क में

अनंग को जगा रहा है

आशिकों के दिल में |

सागर भी उछल रहा है

चाहत है छुए चाँद को

लहर से पीट रहा है 

अपने विशाल सीने को |      

© कालीपद ‘प्रसाद’

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