Saturday, 23 July 2016

ग़ज़ल/गीतिका

उस ने सोचा सही आदमी की तरह
भावना से भरा दिल नदी की तरह  |

हर समर जीतना, है नहीं लाज़मी
मैं न माना है, बेचारगी की तरह |

अडचनों से कभी, हम डरे ही नहीं
हम ने देखा नहीं, जिंदगी की तरह|

इंतजारों  के पल तो, गुज़रता नहीं
हर घडी बीतती, चौजुगी की तरह |

होती वर्षा कभी, मूसलाधार भी
नाली बहती है क्रोधी, नदी की तरह |

दौड़ के होड़ में, था वही अप्रतिम
तेज भागा वही, बारगी की तरह |

बारगी – घोड़ा
कालीपद 'प्रसाद'

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-07-2016) को "मौन हो जाता है अत्यंत आवश्यक" (चर्चा अंक-2413) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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