कुछ
को लगा कि नाव डूबता नज़र आ रहा है
तो
कोई अपनी सत्यता का गीत
गाता रहा है |
तो
कोई माँगता है हक़ तमाम संपत्ति स्वामित्व
फिर
इंदिरा को याद
कर प्रशस्ति गाता रहा है |
दिन
भर खड़े खड़े हताश लोग सब हैं परेशां
कुछ
नोट वास्ते तमाम दिन ही प्यासा
रहा है |
आशा
कभी रही नहीं कि अच्छे दिन गप्प होगा
चेहरा
सभी कुसुम कली निराश मुरझा रहा है |
वादा
बहुत हुआ प्रसाद कुछ मिला भी नहीं अब
मुँह
अब झुका झुका इधर उधर छिपाता रहा है |
© कालीपद ‘प्रसाद’
बहुत सुन्दर ...
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