Thursday, 22 December 2016

ग़ज़ल /गीतिका

न किसी को कभी रुलाना है
हर दम हर को तो हँसाना है|१

कर्मों के फुलवारी से ही
यह जीवन बाग़ सजाना है |२

दुःख दर्द सबको विस्मृत कर
जश्न ख़ुशी का ही मनाना है |३

मौसम का मिजाज़ जैसा हो
प्रेम गीत तो गुनगुनाना है |४

रकीब की मरजी पता नहीं
अपना घर नया बसाना है |५

चश्मा द्वेष का उतार देखो
दुनियाँ प्यार का खज़ाना है |६

गरीब और धनी बीच फर्क
भेद भाव सभी मिटाना है |७

मज़हब अलग अलग पर इक रब
सबको ये राज बताना है |८


© कालीपद ‘प्रसाद’

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुकर्वार (23-12-2016) को "पर्दा धीरे-धीरे हट रहा है" (चर्चा अंक-2565) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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