Sunday, 11 June 2017

ग़ज़ल

एक तर्ही ग़ज़ल
न उत्कंठा, न हो हिम्मत, नया क्या
न हो ज़ोखिम तो’ जीने का मज़ा क्या ?
चुनावी पेशगी में चीज़ क्या क्या
पुराने नोट अब भी कुछ बचा क्या ?
महरबानी ते’री झूठी ही’ लगती
है’ तू शातिर शिकायत या गिला क्या ?
निगाहें तेरी’ क़ातिल बेरहम किन्तु
बिना ये क़त्ल, मुहब्बत का नशा क्या ?
गज़ब का उसका’ चलना बोलना
इबारत क्या इशारत क्या अदा क्या ? ( गिरह )
कालीपद 'प्रसाद'

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 12 जून 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 12 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. चंद शब्द समेटे हुए हैं जीवन के अनेक विषय। बहुत खूब ,सुंदर रचना।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-06-2017) को
    रविकर यदि छोटा दिखे, नहीं दूर से घूर; चर्चामंच 2644
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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