भावी पीढ़ी चाहती, आस
पास हो स्वच्छ
पूरा भारत स्वच्छ
हो, अरुणाचल से कच्छ |
हवा नीर सब स्वच्छ
हो, मिटटी हो निर्दोष
अग्नि और आकाश भी, करे
आत्म आघोष |* (खुद की शुद्धता की घोषणा उच्च स्वर में करे )
नदी पेड़ सब बादियाँ,
विचरण करते शेर
हिरण सिंह वृक
तेंदुआ, जंगल भरा बटेर |
पाखी का कलरव जहाँ,
करते नृत्य मयूर
समुद्र की लहरें
उठी, छूना चाहे चाँद
दिनांक 06/06/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-06-2017) को
ReplyDeleteरविकर शिक्षा में नकल, देगा मिटा वजूद-चर्चामंच 2541
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
विश्व पर्यावरण दिवस विशेष, बेहतरीन दोहे...
ReplyDeleteसादर—
चहलकदमी: पर्यावरण नित्यम् संकल्प
आदरणीय ,वाह्ह ! क्या बात है ,उत्तम दर्जे की रचना ,आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteस्वच्छ-सुन्दर,प्राकृतिक जीवन की मनोरम कल्पना -सच हो जाये तो जैसे वरदान मिल जाये.
ReplyDeleteस्वस्थ-स्वस्थ प्राकृतिक जीवन की यह मनोरम कल्पना सच हो जाये तो लगे वरदान मिल गया .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeleteबेहतरीन दोहे
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