Tuesday, 6 June 2017

सरस्वती वन्दना (कुण्डलिया छंद में )




वर दे मुझको शारदे, कर विद्या का दान
तेरे ही वरदान से, लोग बने विद्वान
लोग बने विद्वान, आदर सम्मान पाये
तेरे कृपा विहीन, विद्वान ना कहलाये
विनती करे ‘प्रसाद’, मधुर संगीत गीत भर   
भाषा विचार ज्ञान, विज्ञानं का मुझे दे वर |
कालीपद ‘प्रसाद

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (08-06-2017) को
    "सच के साथ परेशानी है" (चर्चा अंक-2642)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. बहुत सुन्दर वंदना!

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