हम कहाँ जा रहे हैं ?
दुनिया विकास की राह पकड़, आगे ही बढ़ी जा रही है,
विश्व मंच पर ज्ञान विज्ञान, की अब तारीफ हो रही है |
उद्योग चीन के घर घर में, अब जोरों से पनप रहे हैं
चीन में बने बम ओ बाजी, अब हिंदुस्तान में फट रहे हैं |
हिन्दोस्तां विज्ञान छोड़कर, मंदिर मस्जिद बना रहे हैं,
विकास का मार्ग छोड़ कर, हम मध्य युग में जा रहे हैं |
टीवी चैनल दिन और रात सदाचार का करते कलरव
किंतु देश में बलात्कार का, होता रहता प्रतिदिन तांडव |
आशा, राम-रहीम को सुना, है कोई लाभ प्रवचनों से ?
जनता की बर्बादी होती, चैनल बनते धनी इसी से |
आर्थिक उन्नति सभी का लाभ, पश्चिम में मुद्दा होता है,
भारत में पार्टी चुनाव में, घूस का प्रस्ताव रखता है |
मुफ्त गैस फिर ऋण माफ़ कहीं, विकास को भूला देते हैं,
अनपढ़, निरीह, बेवस मानुष, भीख लेकर वोट देते हैं |
कलीपद 'प्रसाद'
कौन जा रहा है? कहिये ले जाये जा रहे हैं :)
ReplyDeleteसादर आभार आ सुशील कुमार जी
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व रंगमंच दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसादर आभार आ यशोदा बहन जी
ReplyDeleteसादर आभार आ हर्षवर्धन जी
ReplyDeleteबहुत सटीक...
ReplyDeleteAaj ke Halat par sundar Kavita. Badhayi Sir.
ReplyDeleteShayad ye bhi aapko pasan aaye: Congress grass in india & Salkhan fossil park
bahut hi sunder kavita h sir
ReplyDeleteYou may like - Writing Tips to Express More with Fewer Words