शिक्षा नसीब होती, कहना जरूर
आता
गर धूर्तता भी’ होती, छलना जरूर आता |
इस देश के सभी नेता झूठ पर टिके हैं
गर देश प्रेम होता, हटना जरूर आता |
प्रासाद के लिए नेता झोपड़ी जलाते
निस्वार्थ रहनुमा को जलना जरूर आता |
गर जिंदगी में’ सुख का सूरज कभी उग आता
तो फिर कभी कभी तो हँसना जरूर आता
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आजन्म जोखिमों से हम खेलते रहे हैं
होते अगर मुलायम डरना जरूर आता |
गर चाहते सभी नेता जात पात से मुक्ति
तब फिर समाज को भी ढलना जरूर आता |
कालीपद 'प्रसाद'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-04-2019) को "वो फर्स्ट अप्रैल" (चर्चा अंक-3292) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया आ डॉ रूपचंद्र शास्त्री जी
Deleteबहुत सुंदर ग़ज़ल।
ReplyDeleteनयी पोस्ट :intzaar और आचार संहिता।
iwillrocknow.com
शुक्रिया नितीश तिवारी जी
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया ओमकार जी
Deleteसुंदर गज़ल
ReplyDeleteशुक्रिया एम वर्मा जी
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