हमेशा प्रेम पाना चाहता हूँ
तुम्हें अब मैं बताना चाहता हूँ |
बहुत झेले दुखों के क्षण निराले
अभी तो मुस्कुराना चाहता हूँ |
नयन से नीर बहना थम गया है
खुशी में गुनगुनाना चाहता हूँ |
छुपाए जख्म जो दुनिया हमें दी
निशानी को मिटाना चाहता हूँ |
निराली जिंदगी है जान लो यह
सभी को अब हँसाना चाहता हूँ |
न पीड़ा, कष्ट कोई, जिंदगी में
खुशी का इक जमाना चाहता हूँ |
गगन में चाँद सूरज सब चमकते
नखत बन टिमटिमाना चाहता हूँ |
कालीपद 'प्रसाद'
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सादर धन्यवाद स्वेता सिन्हा जी
ReplyDeleteनयन से नीर बहना थम गया है
ReplyDeleteखुशी में गुनगुनाना चाहता हूँ |
बहुत सुन्दर... लाजवाब....
वाह!!!
आपको पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ आ सुधा देवरानी जी
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ReplyDeleteगगन में चाँद सूरज सब चमकते
नखत बन टिमटिमाना चाहता हूँ
वाह ! बहुत ही सरस-सरल रचना।
आपको पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ आ. मीना शर्मा जी
Deleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपको पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ आ कैलाश शर्मा जी
Deleteबहुत ही सुन्दर और शानदार गज़ल
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