Saturday 23 March 2019

ग़ज़ल

दोस्तों , करीब दो साल से   मेरा ब्लॉग dormant था क्योंकि मिस align हो गया था | अभी ठीक कर पाया हूँ | आशा है अब नियमित रूप से  रचनाओं आदान प्रदान एवं टिप्पणी कर पायेंगे ,टिप्पणी के लिए धन्यवाद भी दे पायेंगे | अभी तक मेरे ब्लॉग में ये बटन काम नहीं कर रहा था | नमस्कार !



इश्क ज्वार में सदा आदमी लुटा गया
बेवफा सनम मुझे ख्वाब में जगा गया |

प्यार की कसम सनम ने ली’ थी कई दफा
क्या कहूँ अभी, मुझे छोड़ कर चला गया |

स्वार्थ में निमग्न है, आदमी निडर सदा
यह उथल-पुथल धरा पर, यही डरा गया |

पेड़ हीन यह धरा खौफनाक जान लो
काटना सही नहीं, जलजला दिखा गया |

जिंदगी में मौज मस्ती व दिल्लगी की थी
प्रेयसी की मौत ने नींद से जगा गया |

दर्द से कराह गहरी निकल रही सदा
मर्म बीच में विरह शूल जो चुभा गया |

बिन प्रिया तमाम दुनिया तन्हा  क्यों हो गई
वक्त तेरे गाल ‘ काली’ चपत लगा गया | |
कालीपद 'प्रसाद'

6 comments:

  1. तन्हा नहीं होती है दुनियाँ वो कहीं फिर भी आसपास होती है।

    सुन्दर भाव।

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  2. आ सुशील कुमार जोशी "तन्हा" है यहाँ टंकण त्रुटी है |सादर नमन ,बहुत दिन के बाद आपसे संपर्क हो पाया है | अभी सुधार देता हूँ |

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  3. Bahut badiya likha aapne. Anand a gaya aapka lekh pad kar

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