गुडिया गिर गई
उसके हाथ ,पैर
टूटकर अलग हो गये।
फ़ेविक़ुइक लाया
उस से जोड़ा ,
गुडिया ठीक हो गई।
दिल के टुकड़े को किस से जोडू ?
रिश्ते के मधुर बंधन से बंधा था ,
वो डोर टूट गया।
किस से बांधूं,कैसे जोडूँ?
बांधूंगा तो गांठ तो रहेगा ,
जोडूंगा,दरारें तो दिखाई देगी ,
पहले जैसे कभी नहीं होगा।
दिल तो एक सीसा है
हर प्रतिबिम्ब इसमें साफ दिखाई देता है ,
जब सीसे में दरार आती है
प्रतिबिम्ब भी टूट जाता है।
प्रतिबिम्ब ना टूटे ,
इसका इलाज केवल एक ही है
कि…सीसा इतना मैला हो जाय
कि…उसकी दरारें दिखाई ना दें
प्रतिबिम्ब भी दिखाई नहीं देगा ना टूटेगा ।
दिल में गर कलुष भर जाय
दिल की दरारें भी समाप्त हो जाएगी
जब वह भाव,भावना,सम्वेदन हीन होगा
तब उसे टूटने का भय भी नहीं होगा।
रसोई में वर्तन टूटते है
रसोइए के या वर्तन वाली के हाथ से।
दिल के टुकड़े होते हैं
नजदीकी यार ,दोस्तों या अपने रिश्तेदारों से।
कालीपद"प्रसाद"
© सर्वाधिकार सुरक्षित
sahi kaha apne....rishton ki ehmiyat uski parwah kam ho gayi hai aajkal...farak bahut kam padta hai logon ko tutne ka....
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने....
ReplyDeleteदिल अगर टूट जाय तो फिर पहले जैसा नहीं हो सकता ..
सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteटूटा दिन फिर ना जुरे ,जुरे गाँठ पड़ जाए..
ReplyDeleteबहुत ही सत्य और सटीक बात कही आपने.
ReplyDeleteरामराम.
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय,
ReplyDeleteटूटे पे पुनि ना जुरै,जुरै गाँठ परि जाय.
आपकी यह रचना कल मंगलवार (23-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteआपका आभार अरुण शर्मा जी !
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteसच्ची और सटीक बात......
ReplyDeleteसादर
अनु
टूट गया सो टूट गया ,फिर क्या मिलना क्या जुड़ना ,
ReplyDeleteनाज़ुक दिल मत तोड़ दोस्तों चले गये फिर क्या मुड़ना
यथार्थ को सटीक अभिव्यक्ति देती सुंदर रचना ! बहुत खूब !
ReplyDeleteबढ़िया है आदरणीय-
ReplyDeleteशुभकामनायें-
बहुत सुंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
गुरु को समर्पित
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html
कुछ चीजें कहाँ जुड़ पाती हैं..
ReplyDeleteसटीक रचना .... अपनों के हाथ ही दिल टूटता है ।
ReplyDeletesachh .. bahut khub !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
ॐ शान्ति
ReplyDeleteबहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब हद के तमाम संबंधों की यही नियति है इसलिए बेहद के बाप कहते हैं -सर्व सम्बन्ध मुझसे ही बनाओ -मामेकम याद रखो ,मनमनाभव।बेहद का सम्बन्ध सिर्फ बाप से होता है .
sahi kaha aaapane rishton ko aapane sukshm rup men bayan kiya
ReplyDeleteदिल अपनों से ही टूटता है क्योंकि आपेक्षा रहती है ...
ReplyDeleteये भाव कभी खत्म नहीं हो पाता ...
अच्छी रचना है ...
बहुत सटीक और सार्थक रचना , बहुत खूब ।
ReplyDeletebohat sahi kaha aapne. jab apne hi dil todte hain toh chot bhi bohat gahri lagti hai
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब पोस्ट
ReplyDeleteसादर
संवेदनशील ही दिल के टूटने का अहसास कर पाता है..सुंदर भाव !
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