Friday, 3 October 2014

शुम्भ निशुम्भ बध :भाग -10



   
घर में देवी माँ की मूर्ती







 आप सबको शारदीय नवरात्रों  ,दुर्गापूजा एवं दशहरा की   शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर   बधकी  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०5    तांका पद हैं ! आज नवमी और दशमी दोनों है | दशहरा भी आज है ! इसलिए भाग ९ और भाग 10 (अन्तिम भाग ) आज ही दो अलग अलग पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी समाप्त हुआ !

भाग ९ से आगे यह अन्तिम भाग है|
शुम्भ बध
         १८३ 
तदनन्तर
देवी और शुम्भ में 
संघर्ष छिड़ा 
वाण वृष्टि तुमुल 
हुए सस्त्र  निर्मूल |
           १८४ 
काटे शुम्भ ने 
देवी के दिव्य अस्त्र 
नाशक अस्त्र,
काटकर वे अस्त्र 
चलाये दिव्या अस्त्र |
           १८५
परमेश्वरी ने 
भर शब्द हुंकार
खिलवाड़ में 
किया नष्ट वाणों को
हुआ कुपित दैत्य |
            १८६ 
शुम्भ ने किया 
आच्छादित देवी को 
वाण वर्षा से 
क्रोधित देवी ने भी
काटे शुम्भ धनुष |
         १८७ 
दैत्यराज ने 
लिया शक्ति हाथ में 
काटी देवी ने 
उसके शक्ति को भी 
अपने चक्र द्वारा |
         १८८ 
दैत्य के स्वामी
ढाल और तलवार
उठाता तब 
धावा किया क्रोध में 
महादैत्य शम्भू  ने |
          १८९ 
उज्ज्वल ढाल
सूर्य रश्मि चमक 
तलवार को
तीखे वाणों के द्वारा 
देवी ने काट डाला |
           १९० 
शम्भू के घोड़े 
सारथि मारे गए 
रथ हीन थे 
,उठाकर मुद्गर 
उद्दत देवी ओर|
         १९१ 
देख देवी ने 
काटी तीक्ष्ण वाणों से 
दैत्य हाथ के 
भयंकर मुद्गर 
बहुत आसानी से |
           १९२ 
इस पर भी 
झपटा देवी ओर
बड़े वेग से 
मारा मुक्का देवी को 
शुम्भ दैत्यराज  ने |
           १९३ 
मारा देवी ने 
जोरसे चांटा एक 
शुम्भ छाती में 
मार खाकर शुम्भ 
गिर पड़ा भू पर |
           १९४ 
किन्तु पुनश्च 
तेजी से उठकर 
खड़ा हो गया 
उछला दैत्य फिर
चंडिका के ऊपर|
           १९५ 
असुर शुम्भ 
आकाश में जाकर 
खड़ा हो गया 
चण्डिका भी उछली 
आकाश में पहुंची |
          १९६ 
लड़ने लगे 
बिना किसी आधार 
एक दूजे से 
बहुत देर तक 
संग्राम के दौरान .....
          १९७ 
चण्डिका देवी 
उठाकर घुमाया 
शम्भू दैत्य को 
और पटक दिया 
जोर से पृथ्वी पर |
        १९८ 
दुष्टात्मा दैत्य 
फिर खड़ा होकर 
दौड़ा वेग से 
सम्पूर्ण ताकत से 
मारने चंडिका को |
        १९९ 
दैत्य के राजा 
शुम्भ को आते देख 
उठाया शूल 
त्रिशूल से देवी ने 
छेदा शुम्भ छाती को ....
          200 
शुम्भ असुर 
गिर पड़ा भू पर 
काँपी धरती 
उड़ा प्राण पखेरू 
महा दैत्य शुम्भ के |
        २०१
पूरा त्रिलोक 
हुआ प्रसन्न स्वस्थ 
आकाश स्वच्छ 
शांत सब उत्पात 
समित  उल्कापात |
        २०२ 
शुम्भ मृत्यु से 
गाये गन्धर्व गण 
मधुर गीत 
देवता भी प्रसन्न 
जगत उल्लसित |
         २०३ 
बाजा बजाए 
देव-गन्धर्व सब 
अप्सरा नाची 
मधुर संगीत से 
प्लावित जगत भी |
         २०४ 
समाप्त हुआ 
कहानी शुम्भ बध 
जय चण्डिका 
जय जय चण्डिका 
नम:त्वम चण्डिका |
           २०५ 
देवी की स्तुती
गाये सब गण भी
देवगण  भी
गाये त्रिशूल धारी
गाये ब्रह्मा विष्णु भी |

     ---इति---

दुर्गा पूजा और दशहरा का हार्दिक शुभकामनाएं !


कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित




10 comments:

  1. माँ जगदम्बा की बहुत सुन्दर झांकी के साथ सुन्दर सार्थक सामयिक प्रस्तुति
    विजयादशमी की शुभकामनाये!

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    1. आपका आभार कविता जी !विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  2. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति
    विजयादशमी की अनंत शुभकामनायें

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    1. आपका आभार सदा जी !विजयदशमी की हार्दिक अभिनन्दन !

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (04-10-2014) को "अधम रावण जलाया जायेगा" (चर्चा मंच-१७५६) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    विजयादशमी (दशहरा) की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आपका आभार रूपचंद्र शास्त्री जी !विजयदशमी की हार्दिक अभिनन्दन !

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  5. सुंदर रचना. विजयादशमी की बधाई

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  6. आपको भी विजय दशमी की शुभकामनाएं !

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  7. सशक्त प्रस्तुति .

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