Wednesday, 1 October 2014

शुम्भ निशुम्भ बध :भाग ८

                                              



आप सबको शारदीय नवरात्रों  ,दुर्गापूजा एवं दशहरा का  शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं ! दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !


  भाग 7 से आग
   निशुम्भ बध

        १४३
विशाल सेना
रक्तबीज समेत
हुए निष्प्राण
देख शुम्भ निशुम्भ
क्रोधित भयंकर |
        १४४
दैत्य प्रधान
निकुम्भ अमर्ष में
सेना के साथ
दौड़ा देवी की ओर
पार्श्वभाग में सेना |
         १४५
सेना के साथ
पराक्रमी शुम्भ भी
मात्री गणों से
युद्ध के लिए आया
मारने चण्डिका को |
                            १४६                               
चण्डिका संग 
शुम्भ निशुभ घोर
संग्राम किया
वे दोनों महा दैत्य
वाणों की वृष्टि किया |
            १४७
मेघों की भांति
वाण वर्षा झुण्ड को
निरस्त किया
चण्डिका ने वाणों से
अन्य अस्त्रों शास्त्रों से |
           १४८-149
चोटिल किया
दैत्य पति अंगों को
जख्मी असुर
निशुम्भ तलवार
सिंह मस्तक पर .....
किया प्रहार
अपने बाहन को
घायल देख
वाण से निशुम्भ की
तलवार काट दी |
      १५०
निशुम्भ शूल
चलाये देवी पर
चलायी  शक्ति
चक्र और मुक्के से
देवी ने चूर्ण किया |
     १५१
गदा फरसा
देवी के त्रुशुल से
भस्म हो गया
वाण वर्षा से बींध
गिरा दिया भू पर |
        १५२
मुर्च्छित भाई
शुम्भ क्रोध बढाई
सीमा के पार
अम्बा देवी का बध
मन में लिए साध |
          १५३
बढ़ाया पग
रथ पर आरूढ़
श्रेष्ट आयुध
सुसज्जित सारथि
वह अद्भुत शोभा |
        १५४
शंख बजाया
देवी ने उसे देखा
चढ़ा प्रत्यंचा
धनुष की टंकार
दुस्सह शब्द किया |
          १५५
घंटा ध्वनी  से
दिशाएँ की गुंजित
महादेवी ने
दैत्य तेज बिनष्ट
की सम्पूर्ण रूप से
          १५६
तदनंतर
सिंह ने की गगन
भेदी दहाड़
सुनकर जिसको
टुटा गज का मद |
        १५७
इससे हुआ
शुम्भ को बड़ा क्रोध
थर्राया दैत्य
देवी ने कहा ,-रुक
दुरात्मन असुर |
         १५८
शक्ति चलायी
दैत्यराज शुम्भ  ने
ज्वाला से युक्त
अग्निमय शक्ति को
देवी ने हटा दिया |
           १५९
शुम्भ गर्जन
प्रकम्पित त्रिलोक
प्रतिध्वनी से
बज्रपात समान
भयंकार आवाज़|
         १६०
काटा देवी ने
शुम्भ के वाण वृष्टि
कोटि वाणों से
क्रोध में भरी हुई
चण्डिका महादेवी |
        १६१
दैत्य शुम्भ को
शूल मारा तेजी से
शुम्भ मुर्च्छित
भू पर गिर पडा
भीषण आघात से |
         १६२
चेतना लौटी
अनुज निशुभ को
इसके बीच
हाथ में ले धनुष
की घायल सिंह को |

नवरात्रों की हार्दिक  शुभकामनाएं

क्रमशः

कालीपद'प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित


      





7 comments:

  1. जय माता की --
    भाई जी आपने जिस आध्यात्मिक स्वरूपों से माँ दुर्गा की व्याख्या की है --- अदभुत है
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर----

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  2. आपका आभार ज्योति खरे जी !

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  3. सभी मित्रों को गांधी जयन्ती,लालबहादुर शास्त्री-जयन्ती,दुर्गापूजा एवं रामनवमी- पर्व की हार्दिक वधाई ! अच्छा प्रस्तुतीकरण !

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  4. आपको भी गाँधी -शास्त्री जयन्ती ,दुर्गा पूजा एवं दसहरा की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  5. बहुत सुन्दर...जय माता दी

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  6. Sunder adbhut prastuti ek baar fir de ..... !!

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  7. aapko durga ashtmi ki hardik shubhkaamnaye ....

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