झंझाबात से जिन हाथों ने "लौ " को घेरकर बुझने से बचाया था
'लौ ' बुझाने का दोष लगाकर ,"लौ " ने ही हाथ को जला दिया।
हवा का हर झोंका आता है "लौ " को बुझाने के लिए , पर "लौ " की हिम्मत देखो
वह हिलता है ,डुलता है,कांपता है ,झुकता है ,फिर तन कर खड़ा हो जाता है।
रातभर जागकर दुआ करते रहे उनकी सलामती का
अब उनको खामिया नज़र आती है हमारे हरेक काम में।
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
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समय का यही फेर है
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है आपने ...
ReplyDeletebahut umdaa
ReplyDeleteबढ़िया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसादर
अनु
अच्छे भाव हैं !
ReplyDeleteहाथ मजबूत बने रहें , मंगलकामनाएं !!
ReplyDeleteBahut sunder bhaaw umda prastuti !!
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