Monday, 13 October 2014

खुदा है कहाँ ?**

मन जब चंचल होता है ,भटकता है यहाँ वहाँ
ढूंढ़ा तुझको सारे जहाँ ,पता नहीं तु छुपा है कहाँ |

वन में ढूंढ़ा ,पर्वत में ढूंढ़ा ,ढूंढ़ा बाग़ बगीचे में
दिल को कुछ शुकून मिला ,फूलों में ताजगी जहाँ |

इंसानों में तो नफ़रत भरा है ,नफ़रतों में तू  कहाँ
कुछ एहसास हुआ मुझ को ,दिल में है प्यार जहाँ |

प्रेमी चालाक ,प्रेमिका चतुर ,प्रेम में वो वफ़ा कहाँ
तेरा एहसास होता है वहाँ ,प्यार में सादगी जहाँ |

पूछा तेरा पता हर प्राणी ,हर खुदाई से यहाँ
मूक संकेत मिला मुझे ,तू  है ,खिला नव पल्लव जहाँ |

निश्छल हँसी बच्चों में ,सुमन के सौरभ जहाँ
तेरा दर्शन तो नहीं हुआ,पर तू मिले मुझ से वहाँ |

तू है यहीं कहीं मेरे आस पास ,मानते है सारे जहाँ !
दीदार को दिल दीवाना है ,एहसास है पर दीदार कहाँ ?


कालीपद "प्रसाद "
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10 comments:

  1. जहाँ सत्य है, शिव है, सुन्दर है, जहाँ करुणा है, दया है, निस्वार्थ प्रेम है, जहाँ परोपकार है और अहम का बलिदान है वहीं खुदा, इश्वर, या गॉड है ! सुन्दर सार्थक प्रस्तुति !

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  2. बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति ..... उम्दा रचना

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  3. हर शेर नए अर्थ लिए ... सच्चाई बयां करते हुआ ....
    बधाई इस ग़ज़ल की ...

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  4. सुन्दर रचना !

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  5. बहुत ही सार्थक रचना

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  6. साथ रहता है पर मिलता नहीं !

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  7. सुन्दर प्रस्तुति .......

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