Friday, 13 January 2017

ग़ज़ल




हमने जब वादा किया तो मुस्कुरा देने लगे
दोस्ती में वो मुझे इक तोहफा देने लगे |

इस जमाने के दिए झटके सभी हमने सहा
जख्म जो तुमने दिया था, बेदना देने लगे |

कार बस के काफिले से ध्वस्त यातायात जब
बंद रस्ते खोल रक्षी रास्ता देने लगे |

हादसा के पीडितों ने तो गँवाया जान खुद
फायदा क्या प्रतिकरण जो दूगुना देने लगे |
 
शत्रु है दिनमान सबके, जुगनू हो या चिराग
शुर्मयी निशि को चिरागें जगमगा देने लगे |

दोस्ती अच्छी अगर है तो ज़माना आपका
मैं हुआ बेचैन यारा हौसला देने लगे  |


कालीपद ‘प्रसाद’

1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री - राकेश शर्मा - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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