चित्र गूगल से साभार |
धर्म क्या है ?
वे करणीय कर्म है ..........
करने पर मिलती है मन को शांति
सीमित नहीं ,असीमित ,अनंत, शाश्वत शांति ,
मिलती है आत्मा को परमात्मा ,
होता है आत्मा और परमात्मा का पूर्ण मिलन।
इसे "मोक्ष" कहते है ज्ञानीजन।
धारणा है ,मान्यता है ...
आत्मा का योनियों में आना जाना रुक जाता है ,
मुक्त होता है "जनम -मृत्यु" का बंधन।
निरन्तर शाश्वत अनन्त शांति
चाहता है प्राप्त करना हर नर नारी।
एक नहीं, पथ है अनेक इसका
उस असीम ,अन्तरिक्ष तक पहुँचने का।
कोई पथ किसी महा मानव का मत है
कोई पथ किसी समूह का सामूहिक अनुभव है।
कुछ कांटे है तो कुछ फुल भी है
कंकड़ पत्थर भी पथ पर है,
हर पथ पर कुछ अर्थहीन,भाव हीन
कर्मकांडों का उलझे जाल है।
कोई पथ अच्छा या कोई बुरा पथ नहीं है
इसपर चलने वालों ने ही
इसे बुरा, भला बनाया है।
गर ,पथ शाश्वत शांति तक ले जाय
पथ अच्छा है,
अन्यथा वह भूलभुलैया है,भ्रामक है।
अनन्त अदृश्य सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान
विस्तार है विश्व ब्रह्माण्ड और
सीमित है क्षुद्र परमाणु कण।
यही है आस्था
यही मंजिल है
यही अंतिम पड़ाव है
हर पथ का
कहते हैं इसको गॉड ,अल्लाह ,भगवान
भक्तजन कहते है इसे कण कण में भगवान।
रचना : कालीपद "प्रसाद'"
©सर्वाधिकार सुरक्षित
अन्त न जाने कहाँ छिपा है,
ReplyDeleteहम प्रारम्भ करें तो कैसे?
sahi bat hai accha ya bura mn se bnaya gaya hai.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और विचारणीय रचना जनाब | होली की हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteहोलिकोत्सव की अनंत शुभकामनाएं
बहुत ही विचारणीय प्रसंग,होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनायें !!
ReplyDeleteहोली की वधाई के साथ-आप की रचना बहुत अच्छी है !
ReplyDeleteमनसा,वाचा, कर्मणा, 'धारण करे' सो धर्म |
काया के हर अंग का, 'धर्म' है 'अपना कर्म'||
आभार ,आप बिलकुल सही कह रहे हैं
Deleteसारे पथ भटकने-भटकाने के लिए हैं।
ReplyDeleteबहुत बढिया संदेश!
होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
आपको होली कि हार्दिक शुभकामनायें और बधाई !!
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रभावशाली सन्देश देती सुंदर रचना रचना,,
ReplyDeleteहोली का पर्व आपको शुभ और मंगलमय हो!
Recent post : होली में.
यथार्थ चिंतन
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें!!!
प्रभावी रचना
ReplyDeleteबहुत बढिया
होली की ढेर सारी शुभकामनाएं
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteगहन भाव युक्त प्रभावी रचना... होली की बहुत-बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें ....
ReplyDeleteबहुत बढिया संदेश!
ReplyDeleteआपको भी होली की समस्त शुभकामनाएं .
ReplyDeletevichar aur vyavhar mey lane layak batein....
ReplyDeleteधारण करे सो धर्म है...सब अकरणीय अधर्म हैं...
ReplyDeleteआभार कुलदीप सिंह जी
ReplyDeleteउत्तम बाते कही आपने अपनी इस रचना में प्रसाद जी ! देर से ही सही किन्तु आपको भी होली और गुड फ्राइडे की हार्दिक शुभकामनाये !
ReplyDeleteप्रभावी रचना उत्तम विचार आदरणीय
ReplyDeleteउचित व्याख्या
ReplyDeleteगहन व्याख्या
ReplyDeleteगहन विचारणीय .
ReplyDeleteजहां से प्रारंभ है वहीं अंत छिपा है..कहीं से भी आरम्भ कर सकते हैं..सुंदर रचना!
ReplyDelete,निश्चित ही सुन्दर विचारणीय रचना,जिसे जीवन में उतारना चाहिए .पास संक्षेप में कहूँ तो शुद्ध ,सात्विक कर्म ही धरम है,मेरा तो यह मानना है, आपकी रचना प्रभावशाली है.आभार
ReplyDeleteब्लॉग में आये और अपने विचारों से मुझे अनुगृहित किये ,आप सब का आभार
Deleteगहन और सार्थक रचना...
ReplyDeleteगहन विचारणीय रचना
ReplyDeleteसूक्ष्म अणुतत्व को जानना ही धर्म है या संसोधित रूप से ईश्वर है .यह जड़ चेतन सभी जगह उपलब्ध है.एक अच्छी रचना ..
ReplyDeleteबहुत खूब रचना | बधाई | आभर
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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सार्थक चिंतन करती रचना ...
ReplyDeleteबधाई ...
होली के शुभ अवसर पर अध्यात्म के रंग से सराबोर कर दिया आपने .
ReplyDeleteएक आश्चर्य है आज शांति अपने भाग्य पर तरश खाती है लोग शांति की तरफ जाना ही नहीं चाहते .
sarthak lekhan..aapse bahut seekhne ko milega..bahut bahut abhar sir..
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ReplyDeleteधर्म की बहुआयामी व्यख्या,सटीक बन पडी.
धर्म एक निजत्व है,एवं निजत्व ही
सत्य है,जो सत्य है वही सत्य-धर्म है.
साभार धन्यवाद,
बहुत सुन्दर सार्थक अर्थ पूर्ण मानव कल्याणकारी विचार प्रेरित रचना .
ReplyDeleteधर्म की बहुत अच्छी व्याख्या. भावपूर्ण रचना, बधाई.
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