Saturday, 16 March 2013

ऋण उतार!

 

चित्र गूगल से साभार 

 

 

ऐ !मेरे सपने !

तू क्यों आता है बार बार ?

ले जाता है मुझे 

उस जगह पर 

जहाँ मैंने एक पौधा लगाया था ,

आज वह विशाल वृक्ष बन गया है ,

पक्षियों को रात का  आसरा और 

 दिन के तपती धुप में 

पंथियों को शीतल छाया देता है।

 

एक आम का पौधा 

जिसे मैंने सींच सींच कर 

गुड़ाई कर खाद डालता था 

उसके किसलयों को देखकर 

मन ही मन खुश होता था ,

आज फल से लदकर  

झुक गया है।

बच्चे ,जवान बूढ़े,पशु ,पक्षी सब 

खुश हैं ,

उसके मीठे फल खाकर पूर्ण तृप्त हैं। 

उसे भी ख़ुशी होती होगी जानकर 

उसका फल किसीका पेट भर रहा है।

मुझे भी गर्व होता है सोचकर कि 

मैंने उसे लगया था।

मन में अपार  शान्ति है  कि 

मैंने अपना ऋण उतार दिया है 

क्योकि मैंने भी आम खाया था 

किसी और पेड़ का 

जो मैंने नहीं लगाया था 

किसी और ने लगाया था।  

 

 

रचना : कालीपद "प्रसाद"       
 ©सर्वाधिकार सुरक्षित

 

  

 

27 comments:

  1. कर्म वही प्रधान जो खुद को संतुष्टि और दूसरों का भला करे .....
    वाकई अच्छा लगता है ....

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  2. सुंदर, सार्थक, सकारात्मक सन्देश देती बहुत बढ़िया प्रस्तुति ! बहुत खूब !

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  3. शुभप्रभात :)
    आपके जज्बे को सलाम !
    शुभकामनायें !!

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  4. बहुत ही सार्थक सन्देस देती सुन्दर प्रस्तुति.

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  5. सार्थक ... हर कोई अपना ऋण उतारे तो पृथ्वी स्वर्ग हो जाए ...

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  6. बहुत ही सार्थक और सुन्दर रचना..

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  7. दिगंबर नासवा जी की टिपण्णी से पूर्णतः सहमत हूँ. सुन्दर भाव.

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |

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  9. बहुत खुबसूरत रचना प्रेरणादायी

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  10. वाह! बहुत सार्थक प्रस्तुति...

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  11. "
    अत्यंत सुन्दर..
    अनुभूति पूर्ण आपकी लेखनी..सम्मानित श्री प्रसाद जी!"

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  12. बहुत सुन्दर रचना - पेड़ लगाओ जीवन बचाओ वाली भावना को बढ़ावा देती ..

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  13. बहुत सही कहा है आपने.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  14. अपने सरकारी आवास में आम के चार पेड़ लगाए हैं-
    अमरुद पपीता सहजन की भरमार है-
    बढ़िया प्रेरित करती रचना-

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  15. मुझे भी गर्व होता है सोचकर कि
    मैंने उसे लगया था।
    मन में अपार शान्ति है कि
    मैंने अपना ऋण उतार दिया है

    jay ho ! shubh ho !
    bahut sundar ... Sadhuwad Adaraniy !

    Pranam !

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  16. खुबसूरत एहसास से भरी ...खुबसूरत रचना !बधाई ....

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  17. nc sr ----------- $ thnx / mere blog tk aane k liye

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  18. सपने में नहीं सचमुच में वृक्ष लगाने हैं..मीठे मीठे सुस्वादु फल खाने और खिलाने हैं..

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    1. अनीता जी यह सपना नहीं ,यह सत्य है ,मैंने कई जगह पर आम अमरुद ,लीची ,अनार , कठहल के पौधे लगाया है. आज वे फलदार वृक्ष हैं .उनके यादों(सपने ) को मैंने इस कविता में सजाया है.

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  19. ...बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद रचना!...बधाई!

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  20. अच्छा सन्देश देती कविता .

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  21. कल दिनांक 24/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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